Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant),
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जो स्त्रियों के समस्त शोकों (रोगों) को दूर रखता है, वह वृक्ष दिव्य औषधि अशोक कहलाती है। नारी स्वास्थ्य के परम मित्र अशोक वृक्ष की छाल का मुख्य घटक के रूप मे प्रयोग कर “अशोकारिष्ट” बनाया जाता है। आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ “भैषज्य रत्नावली” के अनुसार अशोकारिष्ट रक्तप्रदर, ज्वर, रक्तपित्त, रक्तार्श (खूनी बवासीर), मन्दाग्नि, अरुचि, प्रमेह, शोथ आदि रोगों को नष्ट करता है। गर्भाशय को बलवान बनाने और गर्भाशय की शिथिलता से उत्पन्न होने वाले अत्यार्तव विकार ( Polymenorrhea) मे इसका उत्तम उपयोग होता है ।
गर्भाशय के अन्दर के आवरण मे विकृति ( Endometritis), डिम्बवाहिनी ( Fallopian tube) की विकृति, गर्भाशय के मुख (Cervix Uteri) पर, योनि मार्ग मे, गर्भाशय के अन्दर या बाहर व्रण (घाव) हो जाने से अत्यार्तव रोग उत्पन्न होता है, इसमे यह अशोकारिष्ट उत्तम लाभ करता है। बहुत सी लड़कियों और स्त्रियों को मासिक धर्म के दौरान भयंकर पीड़ा होती हैं, जिसे कष्टार्तव (Dysmenorrhea) कहते हैं। इस रोग के पीछे मुख्यतः डिम्बवाहिनी और डिम्बाशय की विकृति कारण होती है । इसमे कमर मे भयंकर दर्द, उदर पीड़ा, सिरदर्द, उल्टियां आदि कष्ट उत्पन्न होते हैं। इन सभी विकारों मे यह योग अशोकारिष्ट उत्तम लाभ करता है।
भोजनोपरान्त आधा कप पानी मे मिलाकर इसकी 4-4 चम्मच मात्रा दोनो समय लेनी चाहिए।
वर्तमान समय में अधिकांश स्त्रियाँ व लड़कियां प्रदर रोग से ग्रसित रहती है। इसका कारण है – अति सहवास, गर्भस्राव, गर्भपात, अपच, अजीर्ण, कमजोरी, अति परिश्रम, मद्यपान, अधिक उपवास, अधिक शोक, तनाव, चिन्ताग्रस्त रहना, दिन मे शयन, आलस्य, बिलकुल श्रम न करना, तले हुए, खटाई युक्त और तेज मिर्च मसालेदार पदार्थों का अति सेवन, इन सब कारणों से स्त्रियो के शरीर मे पित्त प्रकोप व अम्लपित्त की स्थिति निर्मित होती है, और इसका प्रभाव रक्त पर होता है, और योनि मार्ग से चिकना, लसदार, चावल के धोवन के समान श्वेत स्राव या पीला, नीला, लाल-काला मांस के धोवन के समान रक्त गिरने लगता है, और उससे दुर्गन्ध आने लगती है, और परिणाम स्वरूप शरीर दर्द, कमजोरी,कमर व पैरो में दर्द, सिरदर्द, चक्कर आना, बेचैनी व कब्ज आदि शिकायतें हो जाती है। इन सब व्याधियों के कारणों को नष्ट करने के लिये यह अशोकारिष्ट उत्तम है—————————————————-
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