हल्दी

हल्दी कन्द चिकित्सा और मसाले के लिए उपयोगी है। हल्दी उष्णवीर्य होने से कफवात नामक पिŸारेचक और तिक्त होने से पित्तनाशक है। हल्दी वतु, तिक्ता, रूक्ष गरम, रंगने के काम आने वाली, कफ पित्त त्वचा के दोष, प्रमेह, रक्तदोष, सूजन, पाण्डु रोग को नष्ट करती है। विद्वानों का मत है कि यह वायु के दोषों को भी शांत करती है।
वास्तव में स्वास्थ्य की दृष्टि से इसके गुणों को देखकर मुग्ध हो जाना पड़ता है। आयुर्वेद की अनेक औषधियाँ अर्थात् घृत तेल आसव अरिष्टों तथा चूणों में इसका सम्मिश्रण होता है। केवल हल्दी के द्वारा अनेक रोग दूर हेाते हैं। पारद संहिता में इसके कल्प का वर्णन किया गया है जिसमें एक वर्ष तक हल्दी और दूूध के सेवन का महत्व बताया है। कहीं भी चोट लगी हो सूजन आया हो हल्दी-चूना मिलाकर लगा दिया जाए तो फौरन दर्द ठीक हो जाता है। और अगर भीतर चोट लग गई हो तो गुनगुने दूध में हल्दी का चूर्ण मिलाकर पिलाने से भीतरी चोट व दर्द में आराम मिलता है।