मोटापा

Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant),

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आयुर्वेद और मोटापा :-

मानव समुदाय के सामने मोटापा आज एक विचित्र महामारी के रूप में उभरा है। यह वैयक्तिक ही नहीं, वरन् चिकित्सा जगत एवं सभ्य समाज के लिये एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। खान-पान के तौर-तरीके, रहन-सहन के ढंग, आरामतलबी आदि शरीर में अतिरिक्त चर्बी बढ़ाने के प्रमुख कारण हैं। कभी यह रोग मध्य वर्ग के नर-नारियों में ही यदा-कदा देखा जाता था, लेकिन आज युवा पीढ़ी के साथ ही बच्चे भी थुलथुलेपन के शिकार होते जा रहे हैं। आँकड़े बताते हैं कि इन दिनों विश्व भर में तीस करोड़ से अधिक लोग मोटापे या स्थूलता से त्रस्त हैं। यह एक ऐसा महारोग है, जो शरीर को बेडौल व थुलथुला तो बनाता है, साथ ही इसके कारण उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, हृदयरोग, अनिद्रा, दमा, हड्डियों की बीमारी, हाॅर्मोन असंतुलन, शारीरिक अपंगता जैसी कितनी ही बीमारियाँ पैदा होती चली जा रही हैं। इसके कारण अधिकांश व्यक्ति असमय ही काल-कवलित होते देखे जाते हैं।

आयुर्वेद शास्त्रों में मोटापे को मेदरोग या स्थौल्य रोग (स्थूलता) कहते हैं। चरक संहिता, सूत्रस्थानम् 21/9 के अनुसार
‘‘जिस रोग में मेद और माँस धातु की अतिवृद्धि होकर नितंब, उदर एवं वक्ष प्रदेश मोटे हो जाते हैं, और लटक जाते हैं तथा चलने-फिरने पर हिलते-डुलते रहते हैं, अंग-प्रत्यंगों में मेद या वसा-संचय के कारण उनकी वृद्धि समुचित रूप से नहीं होती है, तथा कार्यक्षमता में कमी आ जाती है, ऐसे व्यक्ति को अतिस्थूल या मोटा व्यक्ति कहते हैं। खान-पान में असंयम एवं अनियमितता के कारण शरीर में जब अनावश्यक रूप से अत्याधिक मात्रा में मेद या वसा जमा हो जाती है, तब व्यक्ति मोटा हो जाता है।’’
जब हम रोग आवश्यकता से अधिक मात्रा में एवं बार-बार उच्च कैलोरियुक्त आहार ग्रहण करते हैं, जिसमें ग्लूकोज या कार्बोहाइड्रेट तथा चिकनाई युक्त पदार्थ सम्मिलित हैं, तो यह अतिरिक्त चर्बी त्वचा एवं शरीर के अन्य अंग-अवयवों के अंदरूनी भाग, पेट और माँसपेशियों के बीच में जमा होती जाती हैं, और हमारा शरीर मोटा और बेडौल बन जाता है। इसे ही मोटापा या मेद या स्थौल्य कहते हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञानी इसे ही ओबेसिटी कहते हैं। यह लैटिन शब्द ओबेसस से बना है, जिसका अर्थ है-अधिक खाना। अपने शब्दार्थ में ही यह बीमारी इस रहस्य को समाहित किये हुये है, कि जरूरत से ज्यादा खाने से मोटापा बढ़ता है। चिकित्सा विज्ञान की भाषा में यह वह अवस्था है, जिसमें शरीर में अत्याधिक वसा का संचय हो जाता है।

आधुनिक चिकित्सा शास्त्र के अनुसार स्थूलता या मोटापा उसे कहते हैं, जिसमें आयु एवं ऊँचाई के हिसाब से शरीर का जितना भार होना चाहिये, उससे दस प्रतिशत अथवा उससे अधिक भार हो। वस्तुतः मोटापे की शुरूआत पेट से होती है, क्योंकि मेद सभी प्राणियों के पेट और अस्थि में रहता हैं। मेद वृद्धि में सबसे पहले तोंद बढ़ती है, तत्पश्चात कूल्हे, गर्दन, कपोल, बाँहें, जंघा आदि में वसा की मोटी परत जमा होती जाती है, और मनुष्य को स्थूल एवं बेडौल बना देती है। आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार मेद या चर्बी बढ़ने के कारण सब धातुओं के मार्ग बंद हो जाते हैं, जिससे शरीर स्थित दूसरी धातुओं – अस्थि, मज्जा, वीर्य आदि का पोषण नहीं हो पाता, केवल मेद या चर्बी ही बढ़ती रहती है। इसके बढ़ने से व्यक्ति सभी कार्यों को करने में अशक्त हो जाता है।

मोटापा मनुष्य के स्वस्थ जीवन के लिये अभिशाप है। आयुर्वेद शास्त्रों में जिन आठ प्रकार के शरीर वाले व्यक्तियों को निंदनीय माना गया है, उनमें अति कृशकाय एवं अति स्थूल व्यक्तियों की गणना प्रमुख रूप से की गई है। चरक संहिता, सूत्र स्थानम् – 21/1-2 में कहा गया है – तत्रातिस्थूल कृशयोर्भूयएवापरे निंदितविशेषा भवंति। अर्थात् इन आठ प्रकारों में अधिक मोटा एवं अधिक दुबला-कृशकाय व्यक्ति विशेष निंदा के पात्र हैं। इतने पर भी तुलनात्मक दृष्टि से इन दोनों में कृशकाय व्यक्ति को फिर भी अच्छा मानते हुये इसी ग्रंथ में आगे कहा गया है –

स्थौल्यकाश्र्ये वरं काश्र्ये समोपकरणौ हितौ।
यद्युभौ व्याधिरागच्छेत्स्थूलमेवातिपीड्येत्।।

अर्थात- अधिक मोटे और अधिक कृशकाय व्यक्तियों में मोटापे अपेक्षा कृशता-दुबलापन फिर भी अच्छा है, क्योंकि दोनों के उपकरण समान होने पर भी स्थूलकाय मनुष्य को रोगग्रस्त होने पर अधिक कष्ट सहन करना पड़ता हैं, मोटे व्यक्तियों की जीवनावधि भी घट जाती है। जन समुदाय में सम्मान की दृष्टि से भी वे तुलनात्मक दृष्टि से पिछड़े ही माने जाते हैं। सुश्रुत संहिता में उल्लेख है – कृशः स्थूलात् पूजितः। अर्थात स्थूल की अपेक्षा दुबला-पतला आदमी अधिक सम्मान के योग्य है। वस्तुतः मनुष्य अपने उत्तम स्वास्थ्य, प्रबल पराक्रम, प्रखर प्रतिभा एवं उज्जवल चरित्र के कारण समाज में सम्माननीय स्थान पाता है। केवल मोटेपन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। आजकल मोटी लड़कियों को विवाह में भी परेशानी आ रही है।

मोटापे की अकारण ही निंदा नहीं की गई है। स्वास्थ्य का सर्वनाश करने में मोटापा सबसे प्रमुख कारण है। इसके कारण अधिकांश व्यक्तियों को दिल का रोग, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, पेट व साँस की अनेक बीमारियाँ धर दबोचती हैं। शरीर स्थूल व थुलथुल हो जाने से अधिकतर व्यक्ति आत्महीनता का शिकार बन जाते हैं। वैज्ञानिक परीक्षण बताते हैं कि मोटे एवं तोंदू व्यक्ति में उदर एवं पाचन सम्बंधी गड़बड़ी के साथ ही उसके रक्त में अच्छे कोलेस्ट्राॅल (एच.डी.एल.) की मात्रा कम व बुरे कोलेस्ट्राॅल की मात्रा बढ़ी हुई होती है। बढ़ी हुई यही खराब कोलेस्ट्राॅल (एल.डी.एल.) हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक एवं ब्रेन स्ट्रोक आदि का कारण बनती है। इसके अतिरिक्त इंसुलिन का स्त्राव कम होने से डायबिटीज का खतरा भी बना रहता है। जिन व्यक्तियों में वसा की मोटी परत जमने के कारण शरीर भारी होता है, उन्हें प्रायः कब्ज की शिकायत, गैस, पीठ का दर्द, छोटी साँस, खर्राटे, स्लीप एप्रिया (श्वास-प्रश्वास में रूकावट) आदि रोग होने की संभावना अधिक रहती है। लीवर एवं किडनी भी ऐसे व्यक्तियों में प्रायः ठीक ढंग से काम नहीं करते। अति स्थूलता से शरीर की मेटाबाॅलिक प्रक्रिया दुष्प्रभावित होती है, जिसके कारण प्रजनन हाॅर्मोन में असंतुलन उत्पन्न होता है, और व्यक्ति, जोड़ों का दर्द, अर्थराइटिस, सायटिका, पक्षाक्षात, रीढ़ का दर्द, हार्निया, ओस्टियोपोरोसिस, वेरिकोस वेन्स, रक्त वाहिनियों में रक्त संचरण में बाधा, पथरी आदि बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं।

यों तो मोटापे की सरल पहचान यह है कि यदि व्यक्ति की तोंद वक्षस्थल से ज्यादा उभरी हुई है, तो माना जाना चाहिये कि हम स्थूलता की ओर बढ़ रहे हैं। गर्भवती महिलायें इसकी अपवाद हैं। उदरवृद्धि के अतिरिक्त शिलिलता, गुरूता, स्वेदाधिक्य, क्षुधाधिक्य, अधिक प्यास, निद्राधिक्य, जड़ता, पीड़ा मुखमाधुर्य, मुख-ताजु-कंठ शोथ, अनुत्साह, आलस्य, तंद्रा एवं शरीर से दुर्गंध आना आदि लक्षण इसमें धीरे-धीरे प्रकट होने लगते हैं। शरीर का वजन अधिक बढ़ जाने से कूल्हे, घुटनों एवं टखनों आदि पर सर्वाधिक भार पड़ता है, जिससे जोड़ वाले इन स्थानों पर दर्द शुरू हो जाता है। अति स्थूलता के कारण व्यक्ति अपनी कार्यक्षमता, सक्रियता और कई बार तो अपना आत्मविश्वास तक खो बैठता है। स्थूलता वृद्धावस्था के शीघ्र आमंत्रण का कारण बनती है। स्थूलता या मोटापा जैसे जीवन शैली रोगों के बढ़ने के कई कारण होते हैं। चरक संहिता, सूत्रस्थानम – 21/3 के अनुसार अधिक तृप्तिकारण, भारी, मीठे, शीतल, चिकनाईयुक्त पदार्थों का सेवन करने से, व्यायाम या परिश्रम न करने से, दिन में सोने से (विशेषकर दोपहर में भोजन करने के तुरंत बाद) तथा आनुवंशिक कारणों से व्यक्ति मोटापे का शिकार बनता है। इससे शरीर में अनावश्यक रूप से वसा इकट्ठी हो जाती है और शरीर थुलथुला बनकर अनेका नेक रोगों का शिकार बन जाता है।

आज की इस सर्वाधिक भयावह एवं नूतन व्याधि – में दो वृद्धि अर्थात मोटापे की समस्या का समाधान खोज रहे पोषण विज्ञानियों एवं चिकित्सा शास्त्रियों ने इनके तीन प्रमुख कारण बतायें है – 1. सहज या आनुवंशिक कारण, 2. आहार-विहारजन्य और, 3. हाॅर्मोन-अंसतुलन। सहज कारण वह है, जो जाति विशेष के अनुसार अथवा आनुवंशिक गुणों के आधार पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी पाया जाता है। ऐसे लोगों की संख्या अंगुलियों पर गिनने लायक ही होती हैं, मोटोपे का प्रमुख कारण वस्तुतः आधुनिक आरामदायक जीवनशैली का खान-पान (जंकफूड वाला) व रहन-सहन है। अत्याधिक पौष्टिक आहार का सेवन, कुछ-न-कुछ सदैव खाते-पीते रहने की आदत, दिन में सोना एवं शारीरिक श्रम या व्यायाम का अभाव मोटापे के प्रधान कारण हैं। अधिक मात्रा में मक्खन, मलाई, दूध, घी, पनीर का सेवन, मद्यपान, माँसाहार, कोल्ड ड्रिंक्स, फास्टफूड, बर्गर पीजा, आइसक्रीम, पेट्रीस, सैंडविच, काॅफी, बिस्किट्स, चाॅकलेट, केक, एवं मिठाइयाँ आदि के अधिक एवं बार-बार सेवन करने से शरीर में धीरे-धीरे अतिरिक्त चर्बी जमा होने लगती है। आज की इंटरनेट संस्कृति ने इस रोग में और भी वृद्धि की है।
इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति शारीरिक श्रम नहीं करते, व्यायाम आदि से बचते हैं, और गरिष्ठ आहार ग्रहण करते हैं, उनका शरीर भी अतिरिक्त ऊर्जा का संचय वसा के रूप में करता है। फलस्वरूप यही वसा या मेद पेट, कमर, गर्दन, गाल आदि में जमा होकर उन्हें भारी व बेडौल बना देती है। हाॅर्मोन-असंतुलन भी मोटापा बढ़ता है। अंतः स्त्रावी गं्रथियों जैसे – थाइराइड ग्रंथि, पिच्यूटरी ग्रंथि, एड्रनल ग्रंथि आदि से उत्सर्जित होेने वाले हाॅर्मोन रसायनों की विकृति भी एक ऐसी जटिल समस्या है, जो सूलिता उत्पन्न करती है, इसके अतिरिक्त अनेक मानसिक एवं भावनात्मक कारण भी ऐेसे हैं, जो व्यक्ति के हाॅर्मोनल एवं चयापचयी संतुलन गड़बड़ी, अकेलापन, निराशा, अतृप्त आकांक्षांये आदि भावनात्मक कारणों से भी व्यक्ति इसका शिकार बनता है। मानसिक तनाव मोटापा बढ़ाने में अहम् भूमिका निभाता है। कई बार स्टीराॅयड प्रकृति की औषधियाँ भी शरीर को स्थूल बना देती है।

निदान :-
स्थूलता मिटाने, मोटापा घटाने और शरीर को छरहरा एवं सुडौल बनाने के लिये योग, व्यायाम एवं जिम से लेकर आहार शास्त्रियों एवं चिकित्सा, विज्ञानिकों द्वारा कितने ही नुस्खे एवं औषधि उपचार प्रचलित प्रसारित है। लोग इन्हें आजमाते भी हैं और कुछ दिनों में वजन भी कम कर लेते हैं। लेकिन थोड़े दिनों बाद जरा सी ढ़ील देते ही वही पुरानी स्थिति फिर से आ जाती है, जब व्यक्ति पहले की अपेक्षा अधिक मोटा हो जाता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि हम कृत्रिम साधनों से अपने शारीरिक वजन को, स्थूलता को नियंत्रित करने का प्रयत्न करते हैं। यदि उचित एवं संतुलित खान-पान, रहन-सहन की आदतों और शारीरिक श्रम, व्यायाम आदि का दैनिक जीवन में समावेश कर लिया जाये तो कोई कारण नहीं कि मोटापे से आसानी से न बचा जा सके।

मोटापा घटाने एवं वजन कम करने के लिये प्रायः डायटिंग या उपवास का सहारा लिया जाता है। महिलाओं में यह प्रचलन विशेष रूप से देखने को मिलता है। लेकिल इस संदर्भ में पोषण विज्ञानियों एवं चिकित्सा – शास्त्रियों द्वारा किये शोध – निष्कर्ष बताते हैं कि छरहरा बनाने इस विद्या को अपनाने से प्रायः लाभ कम, हानि ज्यादा है। लम्बे समय तक डाइटिंग करते रहने से आॅस्टियों पोरोसिस जैसी स्वास्थ्य समस्यायें उठ खड़ी होती हैं।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में अति स्थूलता अथवा मोटापा दूर करने के लिये ‘लाइपोसक्षन’ नामक उपचार प्रक्रिया का आश्रय लिया जाता है। इस विधि में डायथर्मी प्रक्रिया द्वारा अथवा एवं मशीन विशेष द्वारा पेट के नीचे जमा हुई वसा की मोटी परत को चूस या सोख लिया जाता है। इसके अलावा सेलोथर्म उपचार, डीपहीट उपचार या गर्म वाष्प स्नान आदि का भी प्रयोग जाता है, पर इन सबके रिबांउड प्रभाव ही होते हैं फिर मोटापा आ घेरता हैै।

भारतीय आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली में इस महारोग से पिंड छुड़ाने और पूर्ण स्वस्थ जीने के कितने ही उपाय-उपचारों है। इस संदर्भ में देव संस्कृति विश्वविद्यालय एवं ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान के चिकित्सा-विज्ञानियों ने अपने गहन अध्ययन, अनुसंधान एवं प्रयोग परीक्षणों के आधार पर जो निष्कर्ष प्रस्तुत किये हैं, उसके सत्परिणाम बहुत ही उत्साह जनक एवं जनोपयोगी सिद्ध हुये हैं। इस उपचार उपक्रम में मुख्य रूप से यज्ञोपचार प्रक्रिया एवं क्वाथ चिकित्सा सम्मिलित हैं। सबसे पहले यहाँ पर मोटापा नाशक विशिष्ट हवन सामग्री का वर्णन किया जा रहा है।

मोटापा नाशक विशिष्ट हवन सामग्री ( इनमें निम्नलिखित वसतुयें समभाग में मिलाई जाती हैं )ः- 1. गिलोय, 2. बायबिडंग, 3. नागरमोथा, 4. चव्य, 5. चित्रक, 6. अरणी (अग्निमंथ), 7. त्रिफला, 8. त्रिकटु, 9. विजयसार, 10. कालीजीरी, 11. लोध्र, 12. अगर, 13. नीम, 14. आम की छाल, 15. अनार की छाल, 16. पुनर्नवा, 17. बाकुची के बीज, 18. गुग्गुल, 19. लोबान, 20. मोचरस, 21. जामुन के पत्ते व बीज, 22. अर्जुन के फल व छाल, 23. कूठ, 24. प्रियंगु, 25. चंदन, 26. नागकेसर, 27. दोनों तरह की तुलसी (रामा और श्यामा), 28. एंरडमूल, 29. अपामार्ग (चिरचिटा या ओंगा), 30. तेजपत्र, 31. मालकांगनी (ज्योतिष्मती) के बीज, 32. सर्पगंधा, 33. जटामांसी, 34. ब्राह्मी, 35. मुलैठी, 36. बच, 37. शंखपुष्पी, 38. पिप्लामूल, 39. पटोलपत्र, 40. देवदार, 41. निर्गुडी, 42. जौ, 43. कपूर, 44. सुगंधबाला, 45. बिल्व, 46. दालचीनी।

उपरोक्त सभी 46 सामग्री को बराबर मात्रा में लेकर साफ-स्वच्छ करके कूट-पीसकर उनका दरदरा जौकुट पाउडर बना लेते हैं और उसे एक डिब्बे में सुरक्षित रख लेते हैं। इस डिब्बे पर ‘मोटापानाशक विशिष्ट हवन सामग्री नं0-2’ का लेबल चिपका देते हैं।

इसी तरह समभाग में 1. अगर, 2. तगर, 3. देवदार, 4. श्वेत चंदन, 5. लाल चंदन, 6. गिलोय, 7. अश्वगंधा, 8. गुग्गुल, 9. लौंग, 10. जायफल आदि को कूट-पीसकर ‘काॅमन हवन सामग्री’ पहले से तैयार रखते हैं। इसमें खाँड़सारी गुड़, गोधृत, जौ आदि भी मिले होते हैं। इसे अलग डिब्बे में रखा जाता है और उस पर ‘काॅमन हवन सामग्री नं0-1’ का लेबल लगा दिया जाता है।

हवन करते समय 50 ग्राम काॅमन हवन सामग्री नं0-1 तथा 50 ग्राम ‘विशिष्ठ हवन सामग्री नं0-2’ को लेकर आपस में अच्छी तरह मिला लेते हैं, तदुपरांत सूर्य गायत्री मंत्र से हवन करते हैं। सूर्य गायत्री मंत्र इस प्रकार है :-

ॐ भूर्भुवः स्वः भास्कराय विद्महे, दिवाकराय धीमहि, तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्।। स्वाहा।। इदम सूर्याय इदम् न मम्।।

इस महामंत्र से कम-से-कम चैबीस आहुतियाँ अवश्य देनी चाहिये। एक-सौ आठ आहुतियाँ दे सकें, तो और भी अच्छा है। इस क्रम को नित्य प्रातःकाल नियमित रूप से कुछ महीनों तक योग-व्यायाम के साथ करते रहने से शरीर की चर्बी घटने लगती है। शरीर की मांसपेशियाँ, तंत्रिका तंतु, हृदय, फेफड़े आदि अंग अवयव सक्रिय हो उठते हैं और अपनी पूर्ण क्षमता से कार्य करने लगते हैं।

हवनोपचार के साथ-साथ निम्नलिखित – ‘मेदनाशक क्वाथ’ का भी सेवन करना चाहिये। इस क्वाथ का सेवन करने से अतिस्थूलकाय व्यक्ति भी सामान्य अवस्था में आ जाता है। जिनकी तोंद बढ़ी हुई है, उनके लिये तो यह सर्वाेत्तम उपचार हैं।

मेदनाशक क्वाथ :- (इसमें निम्नलिखित चीजें बराबर-बराबर मात्रा में मिलाई जाती हैं )ः- 1. आँवला, 2. हरड़, 3. बहेड़ा, 4. गिलोय, 5. नागरमोथा, 6. तेजपत्र, 7. चित्रक, 8. विजयसार, 9. हल्दी, 10. अपमार्ग (चिरचिटा) के बीज।
उपरोक्त सभी 10 चीजों को समभाग में लेकर कूट-पीसकर उसका जौकुट कर पाउडर बना लेते हैं, और उसे सुरक्षित डिब्बे में रख लेते हैं।

क्वाथ बनाने की सरल विधि यह है कि इस पाउडर में से पाँच चम्मच (15 ग्राम) पाउडर निकालकर आधा लीटर पानी में स्टील के एक भगोने में डालकर रात में रख देते हैं। सुबह से चूल्हे या गैस बर्नर पर मंदाग्नि पर चढ़ाकर क्वाथ बनने के लिये रख देते हैं। उबलते-उबलते जब चैथाई अंश पानी शेष बचता है, तो उसे बर्नर पर से उतारकर ठंडा होने पर महीन कपड़े में निचोड़कर छान लेते हैं। क्वाथ का आधा भाग सुबह 8 से 10 बजे के बीच खाली पेट एवं आधा भाग शाम को 4 से 6 बजे के बीच सेवन करते हैं। क्वाथ पीते समय उसमें एक चम्मच शहद अवश्य मिला लेना चाहिये। पथ्य-परहेज के साथ नित्य नियमित रूप से इस क्वाथ को शहद के साथ सेवन करने से महीने भर में यह अपना प्रभाव दिखाने लगता है। अनावश्यक स्थूलता घटने लगती है और व्यक्ति कुछ ही दिनों में दुबला हो जाता है। क्वाथ का सेवन भोजन करने से कम से कम एक घंटे पूर्व करना चाहिये। स्थूलता-मोटापा या बढ़ी हुई तोंद से त्रस्त जो लोग तथ्य-परहेज का अक्षरशः पालन नहीं कर सकते, उनके लिये निम्नांकित चूर्ण या पाउडर बहुत ही लाभकारी सिद्ध होता है। क्वाथ के साथ या अकेले ही इसका सेवन करने भोजन करने के बाद जो पोषक तत्व पहले वसा या चर्बी मे बदलकर मोटापा बढ़ा रहे थे, वह प्रक्रिया रूक जाती है और उसके स्थान पर रसरक्त की अभिवृद्धि होने लगती है।

स्थौल्यहर पाउडर :- इसमें निम्नलिखित चीजें मिलाई जाती हैं :- 1. सौंठ 10 ग्राम, 2. पीपल 10 ग्राम, 3. काली मिर्च 10 ग्राम, 4. पिप्लामूल 10 ग्राम, 5. आँवला 10 ग्राम, 6. हरड़ 10 ग्राम, 7. बहेड़ा 10 ग्राम, 8. चव्य 10 ग्राम, 9. चित्रकमूल 10 ग्राम, 10. कालीजीरी 10 ग्राम, 11. बाकुची बीच 10 ग्राम, 12. अपामार्ग के बीज 10 ग्राम, 13. बायबिडंग 10 ग्राम, 14. सेंधा नमक 10 ग्राम, 15. काला या साँचल नमक 10 ग्राम, 16. सादा नमक 10 ग्राम, 17. यवक्षार 19 ग्राम, 18. कांतलौह भस्म 10 ग्राम।

उपरोक्त सभी 18 सामग्री को एक साथ घोट-पीसकर कपड़छान करके एयर टाइट शीशे के बर्तन या प्लास्टिक के डिब्बे में सुरक्षित रख लेना चाहिये। इसमें से नित्य नियमित रूप से आधा ग्राम से एक ग्राम चूर्ण सुबह व आधा ग्राम से एक ग्राम (आधा चम्मच) शाम को, दो चम्मच शहद में अच्छी तरह मिलाकर चाट लें। शहद के अभाव में थोड़े जल के साथ भी ले सकते हैं। कम-से-कम 6 माह तक सेवन करने से उपरोक्त प्रतिफल सामने आने लगते हैं। तोंद घटाने एवं मोटापा दूर करने के लिये योगासन, व्यायाम, खेलकूद, टहलना, बागवानी आदि का क्रम दैनिक जीवन में अवश्य सम्मिलित रहना चाहिये।

दूसरी ओर पथ्य-परहेज का भी पालन करना चाहिये, विशेषकर तब, जब उपरोक्त हवनोपचार एवं क्वाथ सेवन चल रहा हो। उन दिनों जौ की रोटी, दलिया, पुराना बासी चावल, कोदो, साँवां, नीवार, प्रियंगु, कुलथी, चना, मसूर, मूँग, अरहर दाल, खील, शहद, मक्खन निकला हुआ मठ्ठा, बैंगन का भूरता, कच्चा केला, परमल, तोरई, लौकी, पत्तागोभी, चैलाई, पालक, मेथी, अदरक, खीरा, ककड़ी मूलीपत्ता का सलाद, उबली सब्जियाँ, हलका सेंघा नमक, अंगूर, नारंगी आदि लिये जा सकते हैं। भारी, गरिष्ठ, मीठे चिकनाईयुक्त एवं तले-भुने पदार्थ अतथ्य हैं। इनके सेवन से बचना चाहिये। भोजन करने आधा घंटा पहले पानी, पानी भोजन के दौरन न पीकर आधा घंटे बाद पानी मोटापे में बहुत लाभकारी है।

नोट: कोई भी औषधी वैद्य के परामर्श से ही सेवन करें।

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