कमल का औशधीय महत्व

कमल का औशधीय  महत्व कमल को हिन्दी मराठी एवम् गुजराती में इसी नाम से जाना जाता है। इस के अतिरिक्त इसे कन्नड़ में बिलिया ताबरे, तेलगू में कलावा, तमिल में अम्बल या सामरे, मलयालम में अरबिन्द, पंजाबी में कांवल, सिन्धी में पबन, संस्कृत में पुण्डरीक, पद्म, रक्त-पद्म, शत-पत्र, अग्रेजी में लोटस तथा लेटिन में नेलम्बियम, स्पेसियोसम कहते हैं। नीलकमल का वनस्पति भाषा में नाम नेलम्बियम न्यूसीफेरा है। यह वनस्पति जगत निम्फीऐसी कुल में आता है।
संक्षिप्त विवरण- कमल के नाम से हम सभी भली भाँति परिचित हैं। यह एक बड़ा जलज क्षुप है जो कि बहुधा गम्भीर और निर्मल नीर वाले स्वच्छ सरोवरों तथा तालों में उत्त्पन्न होते हैं। इनके पत्ते बड़े-बड़े और गोल तथा चिकने (जिन पर जल का बिन्दु न ठहरे) होते हैं। कमल के पुश्प के नीचे डन्डी होती है उसको मृणाल अर्थात् कमल नाल कहते हैं। कमल पुश्प में उपस्थित ‘‘पीले जीरे’’ को कमल केशर तथा कमल पुश्प की रज को मकरंद तथा कमल के पुश्प के पश्चात् जो फल लगते हैं उन्हें पद्म कोश कहते हैं। पद्म कोश में निकलने वाले बीजों को कमल गट्टा तथा कमल की जड़ को मसीड़ा कहते हैं।

आयुर्वेद का मत आयुर्वेद के मतानुसार कमल शीतल, वर्ण को उत्तम करने वाला, मधुर और कफ-पित्त, तृषा, दाह, रूधिर विकार, फोड़ा, विष तथा विसर्प नाशक है। यह हृदय को शांति एवं चित्त को आनंदित करने वाला है। इस के अलावा कमल केशर शीतल, वृष्य, कसैली, ग्राही, कफ, पित्त तथा दाह, तृषा, रक्त विकार, बवासीर, विष, सृजन, इत्यादि का शमन करने वाली होती है। मृणाल शीतल, वृष्य भारी, पाक में मधुर, दुग्धवर्द्धक, वातकफकारक, ग्राही, रूक्ष, पित्त, दाह तथा रक्त विकार को दूर करने वाली है। कमलगट्टा स्वादु, कड़वा, और उत्तम गर्भस्थापक होता है। यह रक्त पित्त का शमन करता है और वात को बढ़ाता है। भवप्रकाश के अनुसार यह कफ एवं वात को हरनेवाला है।
कमलनाल, अविदाही, रक्त और पित्त को शुद्ध करने वाली मधुर, रूक्ष, तथा पित्त और दाह शामक है। यह मूत्र कृच्छ नाशक तथा उत्तम रक्त वर्द्धक एवं वमनहर है।
कमलपत्र शीतल, कड़वे, कसैले तथा दाह, तृषा, मूत्र कच्छ और रक्त-पित्त नाशक होते हैं।

कमल के भेद-
कमल में पुश्प, वर्ष और आकार भेद से अनेक जातियाँ होती हैं। इन सब में ‘‘सूर्य विकासी’’ व ‘‘चन्द्र विकासी’’ प्रमुख हैं। इनमें से सूर्य विकासी बड़े तथा चन्द्र विकासी छोटे होते हैं। इन दोनों ही प्रकार में श्वेत, रक्त तथा नील ये 3- 3 भेद हैं।

कमल के औशधीय  प्रयोग-
1. नवीन श्वेत प्रदर में- नील कमल की केसर सेंधव नमक, जीरा तथा मुलैठी को समभाग लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 5 ग्राम की मात्रा में दही अथवा शहद के साथ सेवन करने से श्वेत प्रदर का नाश होता है।
2. रक्तार्श में- 5 ग्राम कमल केशर प्रतिदिन सुबह मक्खन के साथ लेने से शीघ्र ही रक्तार्श नष्ट होता है।

  1. दाह शमन हेतु- कमन और केले के पत्तों को बिछा कर उसपर शयन करने से शरीर की दाह शांत होती है। पुनः यदि शरीर पर इसी के साथ-साथ चंदन के पानी का भी छिड़काव किया जाय तो और भी जल्दी आराम होता है।
  2. वमन नाश हेतु- कमल गट्टे को भूनकर उसकी गिरी को सेवन करने से वमन का नाश हाता है। किंतु इस प्रयोग में गिरी के मध्य का हरे रंग का अंकुर निकाल देना चाहिए।
  3. कूचों को कठोर करने के लिए- कूचों को कठोर करने के लिए कमल गट्टा, हल्दी तथा असगंध समान मात्रा में लेकर और दूध में पीसकर उसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिला कर 10 ग्राम मात्रा में दूध के साथ सेवन की जाय तो शीघ्र लाभ दिखाई देता है।
  4. समागम शक्ति बढ़ाने के लिए- कमल की जड़ को तिल के तेल में औटाकर रख लें इस तेल की सिर में मालिश करने से सिर तथा नेत्रों में तरावट आती है। तथा समागम की शक्ति बढ़ती है।
    7. स्वप्न दोश के लिए- कमल के पत्तों को बिछौने के नीचे बिछाकर उसपर शयन करने से स्वप्न दोश में कमी आती है।
    8. सिर की शीतलता के लिए- एक लीटर तेल में कमल के पंचांग को ड़ालकर औटावें जब वह जल जावे तो छानकर रख लें, इस तेल को सिर में लगाने से सिर में तनाव तथा पीड़ा दूर होती है।
    9. रक्त प्रदर में- कमल केशर, मुलतानी मिट्टी और मिश्री के चूर्ण को फाँककर ऊपर से जल पीने से रक्त प्रदर मिटता है।
    10. कांच निकलने में- कमल के पत्तों को पीसकर खांड के साथ सेवन करने से कांच का निकलना बंद हो जाता है।
    11. गर्भाशय से रक्तस्राव होने पर- गर्भिणी के गर्भाशय से रक्तस्राव होने पर कमल पुष्पों का फाण्ट देने से रक्तस्राव शीघ्र ही बंद होता है। यह गर्भिणी के लिए निर्दोश उपाय है।
    12. स्त्रीयों की दुर्बलता के लिए- कमल गट्टे के चूर्ण को मिश्री मिले हुए दूध के साथ एक माह तक सेवन करने से स्त्रीयों के शरीर की दुर्बलता दूर होती है।
    कमल का ज्योतिषीय महत्व
    1. जिस की जन्मपत्रिका में लग्न स्वामी की स्थिति निर्बल हो उस जातक को कार्तिक मास में नित्यप्रति विष्णु व लक्ष्मी जी की प्रतिमा पर कमल के फूल अर्पित करने चाहिएं। ऐसा करने से लग्नेश का दोश दूर हो जाता है।
    2. जो व्यक्ति रविवार के दिन इलायची, साठी चावल, खस, मधु, अमलतास, कमल, कुंकुम, मेनसिल तथा देवदार को जल में ड़ाल कर उस जल से स्नान करता है उस की सुर्य पीड़ा शांत होती है। 7 रविवार यह प्रयोग करना चाहिए।
    कमल का तांत्रिक महत्व
    1. शास्त्रानुसार लक्ष्मी जी की पूजा में कमल के पुष्पों को अर्पित करना बहुत शुभ होता है।
  5. कमल गट्टे तथा हल्दी की गाँठ दोनों पांच-पांच पीस लेकर अपनी तिजोरी में रखने से उसमें धन-धान्य की बरकत बनी रहती है।
    कमल का वास्तु में महत्व
    घर के ईशान क्षेत्र में एक छोटा सा तलाब बना कर उसमें नीलकमल या रक्त कमल का रोपण करने से उस घर में लक्ष्मी जी का सदा वास रहता है।