यंत्रा और मंत्रा प्रजनन के देवता काम ने कादिविद्या मूलमंत्रा की उपासना की थी। जिसके बल से कामदेव का सामर्थय इतना बढ़ गया की वह बड़े-बड़े मुनियों के चित्त को भी आच्छत् करने लगा। ब्लें रति का बीज मंत्रा है। ब् और ल् उसके नेत्रा हैं और ए शक्ति रूप है। वपुषा पद से व्, लेह्येत पद से ले और महतां मुनिनां पद के अनुस्वार से लेकर उक्त बीज मंत्रा का उद्धरण किया जाता है। माया बीज और कामबीज के योग से ‘‘हृी क्लीं ब्लें’’ इस साध्य सिद्धमंत्रा का उद्धार है। इस मंत्रा से हृदयचक्र और महानाद के ऊपर शक्ति का न्यास किया जाता है। अर्थात् यंत्राकृति तैयार की जाती है। जिस का फल सौभाग्य प्राप्ति है।
इसी प्रकार महामृत्युजय यंत्रा और मंत्रा का विचार करें तो देखते हैं- इसके बीज ‘हृौं जूं सः’ शिव-शक्तिमय हैं। हृौं शिवबीज, जूं जीवनबीज, सः शक्तिबीज है। शिवबीज हृौं से जीवनशिक्ति जूं का आप्यायन होता है तथा शक्तिबीज सः से जीवनशक्ति (जीवनक्रम) की वृद्धि होती है। जूं (जीवनशक्ति) के शिवशक्त्याश्रय होने से जीवन वृद्धि का नाम मृत्यु्जयसिद्धि है।
अभिष्ट की प्राप्ति के लिये मंत्रा और तंत्रा का या इनकी शक्तियों और प्रतिक्रियाओं का जो प्रयोग प्रतिकात्मक अथवा चित्रात्मक रूप से किया जाता है, उस स्वरूप को ‘यंत्रा’ कहा जाता है।
यंत्रा एवं उसकी साधना करके लौकिक कामनाओं की पूर्ति की जाती है। अथवा कहा जा सकता है कि अपनी कामना पूर्ति के लिये यंत्रा साधना क्रियात्मक विधान है। इसके द्वारा साधक साध्य से मिलकर अपनी समस्त इच्छाओं की पूर्ति करता है। इन यंत्रों के द्वारा न केवल हमारी सांसारिक इच्छायें पूर्ण होती हैं, बल्कि लौकिक सिद्धियाँ भी मिलती हैं जिनसे दुःखों की निवृति और अंत में मुक्ति भी संभव है।
प्रस्तुत ‘‘यंत्रा विशेषांक’’ में अनेक प्रकार के यंत्रा सम्बंधी लेख भिन्न-भिन्न लेखकों के द्वारा दिये गये हैं। वस्तुतः प्रत्येक साधक (लेखक) के अपने-अपने अनुभव के आधार पर ही यंत्रा सम्बंधी लेख प्रकाशित किये गये हैं। इस के साथ मेरी अपनी राय यही है कि आप किसी भी सिद्ध साधक के द्वारा प्राण प्रतिष्ठित यंत्रा ही लें क्योकि यंत्रा स्वयं में जड होते हैं; इनकी जब तक प्राण प्रतिष्ठा नहीं करवाई जाती तब तक यह चैत्नय अवस्था में नही आते और ना ही अपना पूर्ण शुभ प्रभाव ही प्रकट करते हैं। अथवा प्राण प्रतिष्ठा का विधान स्वयं समझकर स्वयं ही प्राण प्रतिष्ठा कर सकते हैं। यह भी ध्यान रहे की कभी-कभी यंत्रा पूजा की सम्पूर्ण विधि-विधान के बाद भी सिद्ध नहीं होते ऐसा उस पूजा की प्रक्रिया की सही जानकारी के आभाव के कारण होता है।