by:- dr. r.b.dhawan
किस-किस श्रेणी के रोगी होते हैं? : –
१. बुद्धिमान ?
२. अबुध?
३. दुर्मति ?
४. मुर्ख ?
प्राज्ञो रोगे समुत्पन्ने बाह्येनाभ्यन्तरेण वा।
कर्मणा लभते शर्म शस्त्रोपक्रमणेन वा।।
च. सू . ११/५६
बालस्तु खलु मोहाद्वा प्रमादाद्वा न बुध्यते।
उत्पद्यमानं प्रथमं रोगं शत्रुमिवाबुधः।।
च. सू . ११/५७
अणुर्हि प्रथमं भूत्वा रोगः पश्चाद्विवर्धते।
स जातमूलो मुष्णाति बलमायुश्च दुर्मतेः।।
च. सू . ११/५८
न मूढो लभते सञ्ज्ञां तावद्यावन्न पीड्यते।
पीडितस्तु मतिं पश्चात् कुरुते व्याधिनिग्रहे।।
च. सू . ११/५९
बुद्धिमान मनुष्य रोग के उत्पन्न होते ही बाह्य वा अभ्यन्तर वा शस्त्र कर्म रूप चिकित्सा ले कर कल्याण को प्राप्त होता है।
अबुध ( बालक बुद्धि ) ही है वो वास्तव में जो अज्ञान वा प्रमाद वस् अपने शत्रु रूप उत्पन्न हुए रोग को प्रारम्भ में ही नहीं समझता।
कुबुद्धि वाला – दुर्मति द्वारा नहीं समजा गया वो रोग प्रारम्भ में अणु रूप – अल्प ही होता है जो पीछे से बढ़ जाता है और बढने से बलवान हुआ रोग दुर्मति मनुष्य के बल एवं आयुष्य को नष्ट करता है।
मूढ़ – मुर्ख व्यक्ति जब तक बलवान रोग से अधिक पीड़ित नहीं होता तब तक उसे दूर करने के लिए संज्ञान नहीं लेता। जब रोग बढ़ जाता है तब अधिक दुखी होता है तत पश्चात व्याधि को दूर करने में अपनी बुद्धि लगाता है।
प्रायः रोगी जो हमारे पास आते है वह अंतिम श्रेणी के होते है, कोई कोई द्वितीय या तृतीय श्रेणी के होते है, परन्तु प्रथम श्रेणी में आने वाले तो विरले ही होते है।
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