बालरोग चिकित्सा

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बच्चों के रोग :-

बच्चों की चिकित्सा बड़ों की चिकित्सा से बहुत अलग होती है, क्योंकि बच्चे अपने रोग या पीड़ा को शब्दों से नहीं बता सकते, चिकित्सक को उसकी पीड़ा संकेतों से ही समझनी होती है। इसके अतिरिक्त माता-पिता को उसकी हर तकलीफ पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है। बहुत मामलों में घरेलू नुस्खों से बहुत लाभ होता है, परंतु इसके लिए हर मां पिता को बच्चे के साधारण रोगों की या तकलीफ की जानकारी हो तो चिकित्सक के पास कम से कम जाना पड़ता है।
दस्त लगने पर : – 1. जायफल या सोंठ अथवा दोनों का मिश्रण पानी में घिसकर सुबह-शाम 3 से 6 रत्ती (करीब 400 से 750 मिलीग्राम) देने से हरे दस्त ठीक हो जाते हैं।

2. दो ग्राम खसखस पीसकर 10 ग्राम दही में मिलाकर देने से बच्चों की दस्त की तकलीफ दूर होती है।

पेट की गड़बड़ी या दर्द :- 5 ग्राम सोंफ लेकर थोड़ा कूट लें। एक गिलास उबलते हुए पानी में सोंफ लेकर थोड़ा कूट लें। एक गिलास उबलते हुए पानी में डालें व उतार लें और ढँककर ठण्डा होने के लिए रख दें। ठण्डा होने पर मसलकर छान लें। यह सोंफ का 1 चम्मच पानी 1-2 चम्मच दूध में मिलाकर दिन में 3 बार शिशु को पिलाने से शिशु को पेट फूलना, दस्त, अपच, मरोड़, पेटदर्द होना आदि उदरविकार नहीं होते हैं। दाँत निकलते समय यह सोंफ का पानी शिशु को अवश्य पिलाना चाहिए जिससे शिशु स्वस्थ रहता है।

अपचः- नागरबेल के पान के रस में शहद मिलाकर चाटने से छोटे बच्चों का आफरा, अपच तुरंत ही दूर होता है।

सर्दी-खाँसी :- 1. हल्दी का नस्य देने से तथा एक ग्राम शीतोपलादि चूर्ण पिलाने से अथवा अदरक व तुलसी का 2-2 मि.ली. रस 5 ग्राम शहद के साथ देने से लाभ होता है।

2. एक ग्राम सोंठ को दूध अथवा पानी में घिसकर पिलाने से बच्चों की छाती पर जमा कफ निकल जाता है।

3. नागरबेल के पान में अरंडी का तेल लगाकर हल्का सा गर्म कर छोटे बच्चे की छाती पर रखकर गर्म कपड़े से हल्का सेंक करने से बालक की छाती में भरा कफ निकल जाता है।
वराधः (बच्चों का एक रोग हब्बा-डब्बा)- सर्दी जुखाम और छाती में कफ व खांसी अक्सर रहना।

1. इस के लिए आक के पौधे की रूई का छोटा सा गद्दा बना लिया जायेगा, उस पर बच्चे को सुलाने से यह रोग ठीक हो जाता है।

2. जन्म से 40 दिन तक कुल मिलाकर दो आने भर (1.5 – 1.5 ग्राम) सुबह-शाम शहद चटाने से बालकों को यह रोग नहीं होता।
3. मोरपंख की भस्म 1 ग्राम, काली मिर्च का चूर्ण 1 ग्राम, इनको घोंटकर छः मात्रा बनायें। जरूरत के अनुसार दिन में 1-1 मात्रा तीन-चार बार शहद से चटा दें।

4. बालरोगों में 2 ग्राम हल्दी व 1 ग्राम सेंधा नमक शहद अथवा दूध के साथ चटाने से बालक को उलटी होकर वराध में राहत मिलती है। यह प्रयोग एक वर्ष से अधिक की आयुवाले बालक पर और चिकित्सक की सलाह से ही करें।

न्यमोनिया में :- महालक्ष्मीविलासरस की आधी से एक गोली 10 से 50 मि.ली. दूध अथवा 2 से 10 ग्राम शहद अथवा अदरक के 2 से 10 मि.ली. रस के साथ देने से न्यूमोनिया में लाभ होता है।

फुन्सियाँ होने परः- 1. पीपल की छाल और ईंट पानी में एक साथ घिसकर लेप करने से फुन्सियाँ मिटती हैं।

2. हल्दी, चंदन, मुलहठी व लोध्र का पाऊडर मिलाकर या किसी एक का भी पाऊडर पानी में मिलाकर लगाने से फुन्सी मिटती हैं।

दाँत निकलने परः -1. तुलसी के पत्तों का रस शहद में मिलाकर मसूढ़े पर घिसने से बालक के दाँत बिना तकलीफ के निकल जाते हैं।

2. मुलहठी का चूर्ण मसूढ़ों पर घिसने से भी दाँत जल्दी निकलते हैं।

नेत्र रोग के लिये:- त्रिफला या मुलहठी का 5 ग्राम चूर्ण तीन घंटे से अधिक समय तक 100 मि.ली. पानी में भिगोकर फिर थोड़ा-सा उबालें व ठण्डा होने पर मोटे कपड़े से छानकर आँखों में डालें। इससे समस्त नेत्र रोगों में लाभ होता है। यह प्रतिदिन ताजा बनाकर ही प्रयोग में लें तथा सुबह का जल रात को उपयोग में न लेवें।

हिचकीः धीरे-धीरे प्याज सूँघने से लाभ होता है।

पेट के कीड़े:- 1. पेट में कृमि होने पर शिशु के गले में छिले हुए लहसुन की कलियों का अथवा तुलसी का हार बनाकर पहनाने से आँतों के कीड़ों से शिशु की रक्षा होती है।

2. सुबह खाली पेट एक ग्राम गुड़ खिलाकर उसके पाँच मिनट बाद बच्चे को दो काली मिर्च के चूर्ण में वायविडंग का दो ग्राम चूर्ण मिलाकर खिलाने से पेट के कृमि में लाभ होता है। यह प्रयोग लगातार 15 दिन तक करें तथा एक सप्ताह बंद करके आवश्यकता पड़ने पर पुनः आरंभ करें।

3. पपीते के 11 बीज सुबह खाली पेट सात दिन तक बच्चे को खिलायें। इससे पेट के कृमि मिटते हैं। यह प्रयोग वर्ष में एक ही बार करें।

4. पेट में कृमि होने पर उन्हें नियमित सुबह-शाम दो-दो चम्मच अनार का रस पिलाने से कृमि नष्ट हो जाते हैं।

5. गर्म पानी के साथ करेले के पत्तों का रस देने से कृमि का नाश होता है।

6. नीम के पत्तों का 10 ग्राम रस 10 ग्राम शहद मिलाकर पिलाने से उदरकृमि नष्ट हो जाते हैं।

7. तीन से पाँच साल के बच्चों को आधा ग्राम अजवायन के चूर्ण को समभाग गुड़ में मिलाकर गोली बनाकर दिन में तीन बार खिलाने से लाभ होता है।

8. चंदन, हल्दी, मुलहठी या दारुहल्दी का चूर्ण भुरभराएँ।

9. मुलहठी का चूर्ण या फुलाया हुआ सुहागा मुँह में भुरभुराएँ या उसके गर्म पानी से कुल्ले करवायें। साथ में 1 से 2 ग्राम त्रिफला चूर्ण देने से लाभ होता है।

मुँह से लार निकलना:- कफ की अधिकता एवं पेट में कीड़े होने की वजह से मुँह से लार निकलती है। इसलिए दूध, दही, मीठी चीजें, केले, चीकू, आइसक्रीम, चॉकलेट आदि न खिलायें। अदरक एवं तुलसी का रस पिलायें। कुबेराक्ष चूर्ण या ‘संतकृपा चूर्ण’ खिलायें।

तुतलापनः -1. सूखे आँवले के 1 से 2 ग्राम चूर्ण को गाय के घी के साथ मिलाकर चाटने से थोड़े ही दिनों में तुतलापन दूर हो जाता है।

2. दो रत्ती शंखभस्म दिन में दो बार शहद के साथ चटायें तथा छोटा शंख गले में बाँधें एवं रात्रि को एक बड़े शंख में पानी भरकर सुबह वही पानी पिलायें।

3. बारीक भुनी हुई फिटकरी मुख में रखकर सो जाया करें। एक मास के निरन्तर सेवन से तुतलापन दूर हो जायेगा।

यह प्रयोग साथ में करवायें- अन्तःकुंभक करवाकर, होंठ बंद करके, सिर हिलाते हुए ‘ॐ…’ का गुंजन कंठ में ही करवाने से तुतलेपन में लाभ होता है।

शैयापर मूत्र (Enuresis)- सोने से पूर्व ठण्डे पानी से हाथ पैर धुलायें।

औषधीय प्रयोगः- सोंठ, काली मिर्च, बड़ी पीपर, बडी इलायची, एवं सेंधा नमक प्रत्येक का 1-1 ग्राम का मिश्रण 5 से 10 ग्राम शहद के साथ देने से अथवा काले तिल एवं खसखस समान मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच चबाकर खिलाने एवं पानी पिलाने से लाभ होता है। साथ में पेट के कृमि की चिकित्सा भी करें।

दमा (श्वास फूलना):- बच्चे के पैर के तलवे के नीचे थोड़ी लहसुन की कलियों को छीलकर थोड़ी देर रखें, एवं ऊपर से ऊन के गर्म मोजे पहना दें। ऐसा करने से दमा धीरे-धीरे मिट जाता है। साथ में 10 से 20 मि.ली. अदरक एवं 5 से 10 मि.ली. तुलसी का रस दें।

सिर में दर्द:- अरनी के फूल सुँघाने से अथवा अरण्डी के तेल को थोड़ा सा गर्म करके नाक में 1-1 बूँद डालने से बच्चों के सिरदर्द में लाभ होता है।

बालकों के शरीर पुष्टि के लिए:- 1. तुलसी के पत्तों का 10 बूँद रस पानी में मिलाकर रोज पिलाने से स्नायु एवं हड्डियाँ मजबूत होती हैं।

2. शुद्ध घी में बना हुआ हलुआ खिलाने से शरीर पुष्ट होता है।

मिट्टी खाने की आदत होने परः- बालक की मिट्टी खाने की आदत को छुड़ाने के लिए पके हुए केलों को शहद के साथ खिलायें।

स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए:- 1. तुलसी के पत्तों का 5 से 20 मि.ली. रस पीने से स्मरणशक्ति बढ़ती है।

2. पढ़ने के बाद भी याद न रहता हो सुबह एवं रात्रि को दो तीन महीने तक 1 से 2 ग्राम ब्राह्मी तथा शंखपुष्पी लेने से लाभ होता है।

3. पांच‌ से 10 ग्राम शहद के साथ 1 से 2 ग्राम भांगरा चूर्ण अथवा एक से दो ग्राम शंखावली के साथ उतना ही आँवला चूर्ण खाने से स्मरणशक्ति बढ़ती है।
4. बदाम की गिरी, चारोली एवं खसखस को बारीक पीसकर, दूध में उबालकर, खीर बनाकर उसमें गाय का घी एवं मिश्री डालकर पीने से दिमाग पुष्ट होता है।
5. दस ग्राम सौंफ को अधकूटी करके 100 ग्राम पानी में खूब उबालें। 25 ग्राम पानी शेष रहने पर उसमें 100 ग्राम दूध, 1 चम्मच शक्कर एवं एक चम्मच घी मिलाकर सुबह-शाम पियें। घी न हो तो एक बादाम पीसकर डालें। इससे दिमाग की शक्ति बढ़ती है।

बच्चे को नींद न आये तब :- 1. बालक को रोना बंद न होता हो तो जायफल पानी में घिसकर उसके ललाट पर लगाने से बालक शांति से सो जायेगा।

2. प्याज के रस की 5 बूँद को शहद में मिलाकर चाटने से बालक प्रगाढ़ नींद लेता है।

स्रोत :- आरोग्य निधि पुस्तक।

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अश्वगंधा 

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अश्वगंधा प्राश (निर्माण विधि) :-


अश्वगंधा का चूर्ण 500 ग्राम, सोंठ का चूर्ण 250 ग्राम, बड़ी पीपल का चूर्ण 125 ग्राम, काली मिर्च का चूर्ण 50 ग्राम। दालचीनी, इलायची, तेजपत्र, और लौंग सभी प्रत्येक पचास-पचास ग्राम बारीक़ पीस लेवें, तदन्तर सबको 6 किलो भैंस के दूध में उबालकर उसमे 3 किलो 500 ग्राम चीनी, और 1 किलो 500 ग्राम शुद्ध घी लेकर उन्हें मिलाकर मिट्टी के बर्तन में मन्दाग्नि पर पकावें। जब उबाल आ जाये तो अश्वगंधा आदि के उपरोक्त समस्त चूर्ण को थोड़े दूध के साथ पकाकर इसमें डाल दें, और उसके बाद अग्नि पर इतना पकावें कि वह करछी से लगने लगें । तदनन्तर उसमें दालचीनी, तेजपत्र, नागकेशर, और इलायची का 20 ग्राम चूर्ण डालकर पकावें । जब उसमें चावल के समान दाने पड़ने लगें और घी अलग होने लगे तब उतारकर पिपलामूल, जीरा, गिलोय, लौंग, तगर, जायफल, खश, सुगंधवाला, सफेद चंदन, बेलगिरी, कमल, धनिया, धाय के फूल, वंशलोचन, आमला, खेर, कर्पूर, पुनर्नवा, वन तुलसी, चिता, और शतावर, प्रत्येक द्रव्य को पांच पांच ग्राम लेकर महीन चूर्ण बनाकर मिलावें और एक बर्तन में फेला देवें। शीतल होने पर प्रमाण अनुसार टुकड़े कर लें।
शास्त्रोक्त गुण धर्म :-

इसके सेवन से कफ, श्वास, अजीर्ण, वातरक्त, प्लीहा, मेदरोग, दुर्जय आमवात, शोथ, शूल, पाण्डु रोग, और अन्य वात कफ विकार नष्ट होते है। इसका एक मास तक प्रयोग करने से वृद्ध भी जवान बन सकता है। मन्दाग्नि के लिए यह बहुत ही हितकर है। यह प्राश शक्ति उत्तपन्न करने वाला तथा बालकों के शरीरों को बढ़ाने वाला है। यह सर्व व्याधि नाशक पाक है।

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