सूर्य किरण चिकित्सा

Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant),

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सूर्य की रोशनी में सात रंग की किरणें होती हैं, ज्योतिषीय मतानुसार सूर्य की किरणों से अपने सातों ग्रहों को अनुकूल कर सकते हैं :-

जातक की कुंडली के प्रतिकूल ग्रहों को सूर्य की किरणों से चिकित्सा कर भाग्य को चमकाया जा सकता है, जन्म कुंडली द्वारा जब यह निश्चित हो जाता है कि कुंडली में कौन कौन से ग्रह कमजोर हैं, जिसे आप उस ग्रह के रंग से ठीक कर सकते हैं। तब उस ग्रह के लिए सूर्य की किरणों से उपचार करना सरल हो जाता है। सूर्य की सातों किरणों का प्रभाव अलग-अलग है, अपनी प्रकृति के अनुसार ये विभिन्न रोगों और मानसिक दोषों को दूर करने में सहायक सिद्ध होती हैं। सूर्य की सातों किरणों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। शरीर में तीन प्रकार के प्रमुख दोष होते हैं:- “वात, पित और कफ” जो ग्रह कमजोर होता है, उस रंग की कमी हो जाती है। जिसे आप जातक की कुंडली से जानकर उस का उपचार कर सकते हैं। जैसे अग्नितत्व कमजोर होगा तो लाल रंग से चिकित्सा करना होगा …

१. पीला (Yellow), नारंगी (Orange), लाल (Red),

2. हरा (Green)

3. बैंगनी (Voilet), नीला (Indigo), आसमानी (Blue)

औषधिय जल निर्माण :-

1. सूर्य किरण चिकित्सा के लिए जिस किरण (Violet, Indigo, Blue, Green, Yellow, Orange या Red) का औषधिय जल बनाना हो, उसी रंग की कांच की साफ़ बोतल ले लेनी चाहिए। यदि उस रंग की बोतल न हो तो उस कलर का BOPP ले कर बोतल पर लपेट दें, बोतलों को अच्छी तरह से धोकर साफ़ कर लें। उसके बाद उसमे साफ़ पीने का पानी भर दें। बोतल को ऊपर से तीन अंगुल खाली रखें, और ढक्कन लगाकर अच्छे से बंद कर दें।

2. पानी से भरी इन बोतलों को सूर्योदय के समय से 6 से 8 घंटे तक धूप में रख दें। बोतलें रखते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी बोतल की छाया दूसरी बोतल पर न पड़े। रात्रि को बोतल को घर के अंदर रख दें। इस प्रकार सूर्य किरण औषधि तैयार हो जाती है। यह औषधिय जल को रोगी को दिन में 3-4 बार पिलायें। एक बार तैयार किये गए औषधिय जल को 4 -5 दिन तक पी सकते हैं। औषधिय जल समाप्त होने के पश्चात पुनः बना लें।

औषधि सेवन कैसे करें : –

नारंगी रंग के औषधिय जल को भोजन करने के 15 मिनट बाद और 30 मिनट के अंदर लेना चाहिए। हरे या नीले रंग के औषधिय जल को खाली पेट या भोजन करने से एक घंटा पहले सेवन करना चाहिए। हरे रंग के औषधिय जल को प्रातः काल 200 मि. ली. तक ले सकते हैं। यह औषधिय जल शरीर से Toxins को बाहर निकालता है, एवं इसका कोई विपरीत प्रभाव भी नहीं है।

मात्रा :- एक बार में एक से दो चम्मच औषधिय जल लें, दिन में तीन या चार बार ले सकते हैं।

औषधीय जल सेवन से लाभ :

1. लाल (Red) रंग :- लाल रंग की बोतल का जल अत्यंत गर्म प्रकृति का होता है। अतः जिनकी प्रकृति गर्म हो उन्हें इसे नहीं लेना चाहिए। इसको पीने से खूनी दस्त या उलटी हो सकती है। इस जल का उपयोग केवल मालिश करने के लिए करना चाहिए। यह Blood और Nerves को उत्तेजित करता है। और शरीर में गर्मी बढ़ाता है। गर्मियों में इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। यह सभी प्रकार के वात और कफ रोगों के लिए लाभ प्रदान करता है।

2. नारंगी (Orange) रंग :- नारंगी रंग की बोतल में तैयार किया गया जल Blood Circulation को बढ़ाता है, और मांसपेशियों को मजबूत करता है। यह औषधिय जल मानसिक शक्ति और इच्छाशक्ति को बढ़ाने वाला है। अतः यदि किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्रमा निर्बल है तो, उसे इस जल का उपयोग करके अत्यंत लाभ प्राप्त हो सकता है। यह औषधिय जल बुद्धि और साहस को भी बढ़ाता है। कफ सम्बंधित रोगों, खांसी, बुखार, निमोनिया, सांस से सम्बंधित रोग, Tuberculosis, पेट में गैस, हृदय रोग, गठिया, Anaemia, Paralysis आदि रोगों में लाभ देता है। यह औषधिय जल माँ के स्तनों में दूध की वृद्धि भी करता है।

3. पीला(Yellow) रंग :- शारीरिक एवं मानसिक स्वस्थता के लिए यह जल बहुत उपयोगी है परन्तु इस जल को थोड़ी मात्रा में लेना चाहिए। यह जल Digestive System को ठीक करता है अतः पेट दर्द, कब्ज आदि समस्यायों के निवारण हेतु इस जल का सेवन लाभकारी है। परन्तु पेचिश होने पर इस जल का प्रयोग वर्जित है। इसके अतिरिक्त हृदय, लीवर और Lungs के रोगों में भी इस जल को पीने से लाभ मिलता है।

4. हरा (Green) रंग :- यह औषधिय जल शारीरिक स्वस्थता और मानसिक प्रसन्नता देने वाला है। Muscles को regenerate करता है। Mind और Nervous system को स्वस्थ रखता है। इस जल को वात रोगों, Typhoid, मलेरिया आदि बुखार, Liver और Kidney में सूजन, त्वचा सम्बंधित रोगों, फोड़ा -फुन्सी, दाद, आँखों के रोग, डायबिटीज, सूखी खांसी, जुकाम, बवासीर, कैंसर, सिरदर्द, ब्लड प्रेशर, आदि में सेवन करना लाभप्रद है।

5. आसमानी (Blue) रंग: – यह जल शीतल औषधिय जल है। यह पित्त सम्बंधित रोगों में लाभप्रद है। प्यास को शांत करता है एवं बहुत अच्छा Antiseptic भी है। सभी प्रकार के बुखारों में सर्वोत्तम लाभकारी है। कफ वाले व्यक्तियों को इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। यह बुखार, खांसी, दस्त, पेचिश, दमा, सिरदर्द, Urine सम्बन्धी रोग, पथरी, त्वचा रोग, नासूर, फोड़े -फुन्सी, आदि रोगों में अत्यंत लाभ प्रदान करता है।

6. नीला (Indigo) रंग:- यह औषधिय जल भी शीतल श्रेणी में आता है। इस औषधि को लेने में थोड़ी सी कब्ज की शिकायत हो सकती है, परन्तु यह शीतलता और मानसिक शान्ति प्रदान करता है। शरीर पर इस जल का प्रभाव बहुत जल्दी होता है। यह Intestine, Leucoria, योनिरोग आदि रोगों में विशेष लाभप्रद है। तथा शरीर में गर्मी के सभी रोगों को समाप्त करता है।

7. बैंगनी (Voilet) रंग :- इस औषधिय जल के गुण बहुतायत में नीले रंग के जल से मिलते जुलते हैं। इसके सेवन से Blood में RBC Count बढ़ जाता है। यही खून की कमी को दूर कर Anaemia रोग को ठीक करता है। Tuberculosis जैसे रोग को ठीक करता है। इस जल को पीने से नींद अच्छी आती है।

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मासिक धर्म

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महिलाओं को मासिक धर्म या पीरियड्स 28 दिन में ही क्यों? :-

मासिक धर्म और चन्द्रमा दोनों के 28 दिवसीय चक्र का ज्योतिषीय सम्बन्ध है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 28 नक्षत्र (अभिजित सहित) होते हैं, जब किसी महिला के जन्म समय के नक्षत्र से वर्तमान चन्द्रमा का गोचर 28 नक्षत्रों पर पूर्ण होता है, तो नियमतः मासिक धर्म आरम्भ होता है। वस्तुत: मासिक धर्म महिलाओं के स्वास्थ्य का सूचक तंत्र है। जिसका ज्योतिषीय संबंध चंद्रमा ग्रह से होता है। इस चक्र में अनियमितता की वजह से महिलाओं को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जहां कुछ महिलाओं को पीरियड देरी से आते हैं तो, वहीं कुछ महिलाओं को मासिक चक्र पूरा होने से पहले ही पीरियड आ जाता है। समय से और नियमित माहवारी आना महिलाओं की सेहत के लिए बहुत अच्‍छा होता है। यदि कोई महिला लगातार अनियमित माहवारी का सामना कर रही है तो, उसको सावधान रहने की जरुरत है। अपने कुंडली के चंद्रमा और मंगल ग्रह पर विशेष ध्यान देना चाहिए। आइए जानते हैं आखिर क्‍यों कई बार महिलाओं को अनियमित मासिक धर्म जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

एक या दो दिन देरी से पीरियड आना या जल्‍दी आना फिर भी सामान्‍य सी बात है। मासिक धर्म का च‍क्र 28 दिनों का होता है। अगर पीरियड एक हफ्ते देरी से आते हैं या पहले ही आते हैं तो यह महिला के लिए चिंताजनक स्थिति है, और इस अवधि में महिलाओं को असहनीय दर्द भी सहना पड़ता है। यहां हम बता रहे हैं कि जल्‍दी और देरी से मासिक धर्म आने का कारण क्‍या है? क्‍या यह स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्‍याएं पैदा कर सकता है?

1. हार्मोनल असंतुलन :- यदि आपके पीरियड अनियमित हैं तो आपको जांच करने की जरुरत है कि कहीं हार्मोन में तो कुछ गड़बड़ नहीं हैं, क्‍योंकि हार्मोन अंसतुलन होने की वजह इसका असर सीधा मासिक धर्म में पड़ता है। एन्डोमीट्रीओसिस एंडोमीट्रीओसिस एक ऐसी स्थिति होती है, जहां गर्भाशय, योनि की दीवारों और फैलोपियन ट्यूबों के अस्तर में एक ऊतक का विकास होता है। जिसकी वजह से मासिक धर्म में अनियमिताएं होती हैं।

2. पोषक तत्वों की कमी :- पौषण की ओर ध्यान देना भी नि‍यमित मासिक धर्म के लिए आवश्यक है। यदि शरीर में निश्चित पोषक तत्‍वों की कमी होने लगती है तो भी इसका असर मासिक धर्म में दिखाई देता है।

3. तनाव :- कभी कभी स्‍ट्रेस का असर भी महिलाओं के मासिक धर्म पर देखने पर मिलता है। जब कोई महिला तनाव में होती है तो शरीर से कॉर्टिसॉल और एड्रेनालाईन हार्मोन शरीर से निकलते हैं, जिसके वजह से मासिक धर्म इफेक्‍ट होते हैं,
थाईराइड की समस्‍या चाहे हाइपरथायरॉडीज या हाइपोथायरायडिज्म हो, दोनों ही मामलों में मासिक धर्म के चक्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। थाइराइड का स्‍तर ज्‍यादा हो या कम लेकिन ये मासिक धर्म के लिए बिल्‍कुल भी ठीक नहीं है। हार्मोन्‍स की गड़बड़ी या असंतुलन की वजह से होता है। इस सिंड्रोम की वजह से ऑवरीज में अंडों का विकास होने में असफल हो जाता है। जिसकी वजह से मासिक धर्म में समस्‍या होती है। और संतान होने में भी समस्या आती है, जिसे आप दैनिक दिनचर्या में सुधार कर ठीक कर सकते हैं।

उपचार :-

1. कैल्शियम की मात्रा को संतुलित करें क्योंकि इसका सम्बन्ध चंद्रमा से है। माँ से संबंध मधुर रखें, पानी अपने वजन के अनुसार पियें। फ्रीज़ का सामान नहीं लें।

2. अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें। भाई से संबंध मधुर रखें, क्योंकि रक्त का संबंध मंगल से है, मासिक में रक्त डिस्चार्ज होता है।

3. लाल मिर्च व खट्टा नहीं खायें और न ही लाल वस्त्र पहनें।क्योकि इससे क्रोध बड़ेगा।

4. सोना नहीं पहने, चाँदी के आभूषणों का प्रयोग अधिक किया करें।

5. पीले वस्त्र अधिक धारण करें, हल्दी मिश्रित दूध का सेवन किया करें।

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