त्रिफला

त्रिफला कब और कैसे लेना चाहिए :-

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त्रिफला के सेवन से अपने शरीर का कायाकल्प करके जीवन भर स्वस्थ रहा जा सकता है, आयुर्वेद की महान देन त्रिफला से हमारे देश का आम व्यक्ति परिचित है, आप ने भी कभी न कभी कब्ज दूर करने के लिए इसका सेवन भी अवश्य किया होगा। पर बहुत कम लोग जानते हैं, इस त्रिफला चूर्ण जिसे आयुर्वेद रसायन भी मानता है, से अपने कमजोर शरीर का कायाकल्प भी किया जा सकता है। बस जरुरत है तो इसके नियमित सेवन करने की, क्योंकि त्रिफला का वर्षों तक नियमित सेवन ही आपके शरीर का कायाकल्प कर सकता है।

त्रिफला सेवन विधि – सुबह हाथ मुंह धोने व कुल्ला आदि करने के बाद खाली पेट ताजे पानी के साथ इसका सेवन करें, तथा सेवन के बाद एक घंटे तक पानी के अलावा कुछ ना लें, इस नियम का कठोरता से पालन करें।

यह तो हुई साधारण त्रिफला सेवन विधि, पर आप कायाकल्प के लिए नियमित इसका इस्तेमाल कर रहे है तो, इसे विभिन्न ऋतुओं के अनुसार इसके साथ गुड़, सैंधा नमक आदि विभिन्न वस्तुएं मिलाकर लें, हमारे यहाँ वर्ष भर में छ: ऋतुएँ होती हैं, और प्रत्येक ऋतु में दो दो मास होते हैं।

1- ग्रीष्म ऋतु- 14 मई से 13 जुलाई तक, त्रिफला को गुड़ 1/4 भाग मिलाकर सेवन करें।

2- वर्षा ऋतु- 14 जुलाई से 13 सितम्बर तक, इस समय इस त्रिदोषनाशक चूर्ण के साथ सैंधा नमक 1/4 भाग मिलाकर सेवन करें |

3- शरद ऋतु – 14 सितम्बर से 13 नवम्बर तक, इस समयावधि में त्रिफला के साथ देशी खांड 1/4 भाग मिलाकर सेवन करें।

4- हेमंत ऋतु- 14 नवम्बर से 13 जनवरी के बीच त्रिफला के साथ सौंठ का चूर्ण 1/4 भाग मिलाकर सेवन करें।

5- शिशिर ऋतु- 14 जनवरी से 13 मार्च के बीच छोटी पीपल का चूर्ण 1/4 भाग मिलाकर सेवन करें।

6- बसंत ऋतु- 14 मार्च से 13 मई के दौरान इस के साथ शहद मिलाकर सेवन करें। शहद उतना मिलाएं जितना मिलाने से अवलेह बन जाये।

इस तरह इसका सेवन करने से एक वर्ष के भीतर शरीर की सुस्ती दूर होगी, दो वर्ष सेवन से सभी रोगों का नाश होगा, तीसरे वर्ष तक सेवन से नेत्रों की ज्योति बढ़ेगी, चार वर्ष तक सेवन से चेहरे का सोंदर्य निखरेगा, पांच वर्ष तक सेवन के बाद बुद्धि का अभूतपूर्व विकास होगा, छ: वर्ष तक सेवन के बाद बल बढेगा, सातवें वर्ष में सफ़ेद बाल काले होने शुरू हो जायेंगे, और आठ वर्ष सेवन के बाद शरीर युवाशक्ति सा परिपूर्ण लगेगा।

दो तोला हरड बड़ी मंगावें। तासू दुगुन बहेड़ा लावें।
और चतुर्गुण मेरे मीता ले आंवला परम पुनीता।।
कूट छान या विधि खाय। ताके रोग सर्व कट जाय।।

त्रिफला का अनुपात होना चाहिए :- 1 : 2 : 3 = 1 (हरड ) + 2 (बहेड़ा ) + 3 (आंवला )
मतलब जैसे आपको 100 ग्राम त्रिफ़ला बनाना है तो, 20 ग्राम हरड + 40 ग्राम बहेडा + 60 ग्राम आंवला
अगर साबुत मिले तो तीनो को पीस लेना और अगर चूर्ण मिल जाए तो मिला लेना

त्रिफला लेने का सही नियम –

सुबह अगर हम त्रिफला लेते हैं तो, उसको हम “पोषक” कहते हैं। क्योंकि सुबह त्रिफला लेने से त्रिफला शरीर को पोषण देता है, जैसे शरीर में vitamine, iron, calcium, micronutrients की कमी को पूरा करता है, एक स्वस्थ व्यक्ति को सुबह ही त्रिफला खाना चाहिए।

सुबह जो त्रिफला खाएं हमेशा गुड के साथ खाएं।

रात में जब त्रिफला लेते हैं उसे “रेचक” कहते हैं क्योंकि रात में त्रिफला लेने से पेट की सफाई (कब्ज इत्यादि) का निवारण होता है।

रात में त्रिफला हमेशा गर्म दूध के साथ लेना चाहिए।

— नेत्र प्रक्षलन: (त्रिफला के पानी से नेत्रों को धोना) एक चम्मच त्रिफला चूर्ण रात को एक कटोरी पानी में भिगोकर रखें, सुबह कपड़े से छानकर उस पानी से आंखें धो लें। यह प्रयोग आंखों के लिए अत्यंत हितकर है। इससे आंखें स्वच्छ व दृष्टि सूक्ष्म होती है। आंखों की जलन, लालिमा आदि तकलीफें दूर होती हैं।

— कुल्ला करना : त्रिफला रात को पानी में भिगोकर रखें। सुबह मंजन करने के बाद यह पानी मुंह में भरकर रखें। थोड़ी देर बाद निकाल दें। इससे दांत व मसूड़े वृद्धावस्था तक मजबूत रहते हैं। इससे अरुचि, मुख की दुर्गंध व मुंह के छाले नष्ट होते हैं।

— त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है। त्रिफला के काढ़े से घाव धोने से एलोपैथिक – एंटिसेप्टिक की आवश्यकता नहीं रहती। घाव जल्दी भर जाता है।

— गाय का घी व शहद के मिश्रण (घी अधिक व शहद कम) के साथ त्रिफला चूर्ण का सेवन आंखों के लिए वरदान स्वरूप है।

— संयमित आहार-विहार के साथ इसका नियमित प्रयोग करने से मोतियाबिंद, कांचबिंदु-दृष्टिदोष आदि नेत्र रोग होने की संभावना नहीं होती।

— मूत्र संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में यह फायदेमंद है। रात को गुनगुने पानी के साथ त्रिफला लेने से कब्ज नहीं रहती है।

— मात्रा : 2 से 4 ग्राम चूर्ण दोपहर को भोजन के बाद अथवा रात को गुनगुने पानी के साथ लें।

— त्रिफला का सेवन रेडियोधर्मिता से भी बचाव करता है। प्रयोगों में देखा गया है कि, त्रिफला की खुराकों से गामा किरणों के रेडिएशन के प्रभाव से होने वाली अस्वस्थता के लक्षण भी नहीं पाए जाते हैं। इसीलिए त्रिफला चूर्ण आयुर्वेद का अनमोल उपहार कहा जाता है।

सावधानी : दुर्बल, कृश व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को एवं नए बुखार में त्रिफला का सेवन नहीं करना चाहिए।

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अशोकारिष्ट

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जो स्त्रियों के समस्त शोकों (रोगों) को दूर रखता है, वह वृक्ष दिव्य औषधि अशोक कहलाती है। नारी स्वास्थ्य के परम मित्र अशोक वृक्ष की छाल का मुख्य घटक के रूप मे प्रयोग कर “अशोकारिष्ट” बनाया जाता है। आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ “भैषज्य रत्नावली” के अनुसार अशोकारिष्ट रक्तप्रदर, ज्वर, रक्तपित्त, रक्तार्श (खूनी बवासीर), मन्दाग्नि, अरुचि, प्रमेह, शोथ आदि रोगों को नष्ट करता है। गर्भाशय को बलवान बनाने और गर्भाशय की शिथिलता से उत्पन्न होने वाले अत्यार्तव विकार ( Polymenorrhea) मे इसका उत्तम उपयोग होता है ।

गर्भाशय के अन्दर के आवरण मे विकृति ( Endometritis), डिम्बवाहिनी ( Fallopian tube) की विकृति, गर्भाशय के मुख (Cervix Uteri) पर, योनि मार्ग मे, गर्भाशय के अन्दर या बाहर व्रण (घाव) हो जाने से अत्यार्तव रोग उत्पन्न होता है, इसमे यह अशोकारिष्ट उत्तम लाभ करता है। बहुत सी लड़कियों और स्त्रियों को मासिक धर्म के दौरान भयंकर पीड़ा होती हैं, जिसे कष्टार्तव (Dysmenorrhea) कहते हैं। इस रोग के पीछे मुख्यतः डिम्बवाहिनी और डिम्बाशय की विकृति कारण होती है । इसमे कमर मे भयंकर दर्द, उदर पीड़ा, सिरदर्द, उल्टियां आदि कष्ट उत्पन्न होते हैं। इन सभी विकारों मे यह योग अशोकारिष्ट उत्तम लाभ करता है।

भोजनोपरान्त आधा कप पानी मे मिलाकर इसकी 4-4 चम्मच मात्रा दोनो समय लेनी चाहिए।
वर्तमान समय में अधिकांश स्त्रियाँ व लड़कियां प्रदर रोग से ग्रसित रहती है। इसका कारण है – अति सहवास, गर्भस्राव, गर्भपात, अपच, अजीर्ण, कमजोरी, अति परिश्रम, मद्यपान, अधिक उपवास, अधिक शोक, तनाव, चिन्ताग्रस्त रहना, दिन मे शयन, आलस्य, बिलकुल श्रम न करना, तले हुए, खटाई युक्त और तेज मिर्च मसालेदार पदार्थों का अति सेवन, इन सब कारणों से स्त्रियो के शरीर मे पित्त प्रकोप व अम्लपित्त की स्थिति निर्मित होती है, और इसका प्रभाव रक्त पर होता है, और योनि मार्ग से चिकना, लसदार, चावल के धोवन के समान श्वेत स्राव या पीला, नीला, लाल-काला मांस के धोवन के समान रक्त गिरने लगता है, और उससे दुर्गन्ध आने लगती है, और परिणाम स्वरूप शरीर दर्द, कमजोरी,कमर व पैरो में दर्द, सिरदर्द, चक्कर आना, बेचैनी व कब्ज आदि शिकायतें हो जाती है। इन सब व्याधियों के कारणों को नष्ट करने के लिये यह अशोकारिष्ट उत्तम है—————————————————-

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