टाईफाइड बुखार और आयुर्वेद

टाईफाइड अर्थात “मियादि बुखार” किसी ज़माने में टाईफाइड को मियादि बुखार इस लिये कहा जाता था क्योंकि इसकी कोई एन्टीबायोटिक नही बनी थीं। यह बुखार अपनी मियाद से ही जाता था। 7, 14, 21, 28, 35 या 42 दिन का चक्र इसके रोगाणुओं का होता है। लगभग 30 – 35 वर्ष पूर्व ही इसके लिए एंटीबाोटिक्स बनी है, ये दावा रोग के रोगाणु तो मर देती है, परन्तु फिर भी रोगाणु  दुर्बल होकर आंतों में पड़े रहते हैं। यदि आपको कभी टाइफाइड बुखार हुआ हो और आपने 7 दिन या 14 दिन एलोपैथ की गोलियां खाकर उसे ठीक कर लिया हो तो, ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसके रोगाणु दुर्बल होकर अंतड़ियों में पड़े रहते हैं। जैसे ही शरीर जरा कमजोर हुआ ये फिर हमला कर देते हैं।

क्योंकि एलोपैथ (अंग्रेजी) दवा केवल उसे दबाती है, शरीर से आँतों से निकालती नहीं। इस लिए इस रोग के लिए आयुर्वेद की शरण लेनी चाहिए। आयुर्वेदिक चिकित्सा भले ही समय अधिक लगाती है, परंतु रोग को जड़ से मिटाती है।

मियादी बुखार की आयुर्वेदिक चिकित्सा:-  किसी भी मेडिकल स्टोर से ‘महासुदर्शन घनवटी’ का 30 गोलियों वाला पत्ता ल लीजिए, और साथ में गिलोय सत्व ले लीजिए। महासुदर्शन घन वटी की एक गोली प्रात और एक शाम को 40 दिन खाइये, और फिर निश्चित हो जाइए आपको जीवन में कभी भी टाइफाइड तो क्या सामान्य बुखार भी नहीं होगा ।

जबर्दस्त कड़वी यह गोली टाइफाइड को तो डंडे मार मारकर खदेड़ ही देगी, और जब तक आप जियेंगे आपको टाइफाइड नहीं हो सकता।

जो भी इस गोली को लेता है, वह इसका गुणगान जीवन भर करता है । यह गोली इतनी कड़वी है कि मुँह में लेते ही तुरंत गुनगुने पानी से निगल जाइये तब भी हल्का सा कड़वा तो कर ही देती है मुंह को। यह गोली आयुर्वेद के ‘महासुदर्शन चूर्ण’ का ही घनसत्व गोली रूप में है, ताकि कड़वापन न झेलना पड़े ।

यह गोली थोड़ी सी गर्म होती है, इसलिए रात को हल्की सी बेचैनी भी कर सकती है, और हो सकता है आपको नींद थोड़ा विलंब से आए । सर्दियों में रात को कोई दिक्कत नहीं । गर्मियों में एक दो गोली खाली पेट केवल सुबह लें गुनगुने पानी से । पाँच साल से ऊपर के बच्चों को एक गोली दे सकते हैं ।

यह गोली घर रखिये और जैसे ही किसी को कोई भी बुखार चाहे वाइरल फीवर लगे हल्का सा भी शक लगे तो रात को दो गोली लेकर सो जाएं । सुबह आप ऐसे उठएंगे जैसे किसी अच्छे मिस्त्री खराब मोटरसाइकिल की बहुत अच्छे से सर्विस कर दी हो । यह गोली पेट की सफाई भी करती है । इस गोली को किसी भी मेडिकल स्टोर से या आयुर्वेदिक स्टोर से खरीद सकते है, जिसमें 30 गोलियां होती हैं ।

यह गोली खून भी साफ़ करती है । तभी तो यह जीवन भर बुखार होने की गारंटी है । टाइफाइड की तो यह दुश्मन है । जिसने इसे प्रयोग कर लिया वो जीवन भर केवल केवल इसी का गुणगान करेगा ।

Dr. R.B.Dhawan (आयुर्वेदिक चिकित्सक)

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रोगी

by:-  dr. r.b.dhawan

किस-किस श्रेणी के रोगी होते हैं? : –

१. बुद्धिमान ?

२. अबुध? 

३. दुर्मति ?

४. मुर्ख ?

प्राज्ञो रोगे समुत्पन्ने बाह्येनाभ्यन्तरेण वा। 

कर्मणा लभते शर्म शस्त्रोपक्रमणेन वा।।

च. सू . ११/५६ 

बालस्तु खलु मोहाद्वा प्रमादाद्वा न बुध्यते। 

उत्पद्यमानं प्रथमं रोगं शत्रुमिवाबुधः।।

च. सू . ११/५७ 

अणुर्हि प्रथमं भूत्वा रोगः पश्चाद्विवर्धते। 

स जातमूलो मुष्णाति बलमायुश्च दुर्मतेः।।

च. सू . ११/५८ 

न मूढो लभते सञ्ज्ञां तावद्यावन्न पीड्यते। 

पीडितस्तु मतिं पश्चात् कुरुते व्याधिनिग्रहे।।

च. सू . ११/५९ 
बुद्धिमान मनुष्य रोग के उत्पन्न होते ही बाह्य वा अभ्यन्तर वा शस्त्र कर्म रूप चिकित्सा ले कर कल्याण को प्राप्त होता है। 

अबुध ( बालक बुद्धि ) ही है वो वास्तव में जो अज्ञान वा प्रमाद वस् अपने शत्रु रूप उत्पन्न हुए रोग को प्रारम्भ में ही नहीं समझता। 

कुबुद्धि वाला – दुर्मति द्वारा नहीं समजा गया वो रोग प्रारम्भ में अणु रूप – अल्प ही होता है जो पीछे से बढ़ जाता है और बढने से बलवान हुआ रोग दुर्मति मनुष्य के बल एवं आयुष्य को नष्ट करता है। 

मूढ़ – मुर्ख व्यक्ति जब तक बलवान रोग से अधिक पीड़ित नहीं होता तब तक उसे दूर करने के लिए संज्ञान नहीं लेता। जब रोग बढ़ जाता है तब अधिक दुखी होता है तत पश्चात  व्याधि को दूर करने में अपनी बुद्धि लगाता है। 

प्रायः रोगी जो हमारे पास आते है वह अंतिम श्रेणी के होते है, कोई कोई द्वितीय या तृतीय श्रेणी के होते है, परन्तु प्रथम श्रेणी में आने वाले तो विरले ही होते है।

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