हरीतकी (हरड़) रसायन
आयुर्विज्ञान शास्त्र में लिखा है कि –
‘सर्वेषामेवरोगाणां निदानं कुपिता मलाः’
अर्थात् सब रोगों के मूल कारण बिगड़े हुये मल ही है जिसमें विशेष उल्लेखनीय उदरमल है। आजकल अधिकांश व्यक्ति प्रायः यही कहते सुने जाते है कि ‘उन्हें मलावरोध (कब्ज) रहता है, पाचनक्रिया ठीक रहीं, भूख नहीं लगती, शिर व पेट में पीड़ा रहती है’ आदि 2 इन सब व्याधियों को शांत करने के लिये हरीत की (हरड़) सर्वसुलभ सर्वाेत्तम महौषधि है। हरड़ का भिन्न-भिन्न ऋतुओं में अनुपान भेद से सेवन क्रम हमारे परम स्नेही आयुर्वेद जगत् के सुप्रसिद्ध वयोवृद्ध विद्वान् श्री पं0 मनोहर लाल जी वैद्यराज महोदय (दिल्ली) ने ज्योतिष-मार्तण्ड के पाठकों के लाभार्थ दिया, वह हम यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं।
हरड़ की उत्पत्ति के सम्बंध में प्राचीन ग्रंथों में लिखा है कि – देवताओं के अमृतपान करते हुये कुछ बूँदे पृथ्वी पर गिरी, उसी से हरीत की उत्पत्ति हुई, अतः अमृतोपमगुण इसमें विद्यमान है, इसीलिये कहा गया है- ‘‘कदाचित् कुप्यति माता नोदरस्था हरीत की।’’
यह सब मानते हैं कि यदि हरड़ समय के अनुसार विधिपूर्वक ली जाये तो मनुष्य कभी रोगी नहीं हो सकता। प्रत्येक ऋतु में हरीत की (हरड़) के सेवन का प्रयोग निम्नांकित है-
1-वर्षा ऋतु में:-
छोटी हरड़ का चूर्ण कपड़छान करके चतुर्थांश सेंधा नमक मिलाकर 4 माशे की मात्रा रात्रि में गर्म पानी से लिया जाये तो कब्ज, बलगमी खाँसी, बवासीर, पेट का दर्द, भूख न लगना, आदि रोग नष्ट होते हैं। 10 से 20 दिन तक ले सकते हैं।
2-शरद् ऋतु में:-
छोटी हरड़ के चूर्ण कपड़छान करके समानांश मिश्री मिलाकर 4 माशे की मात्रा में गर्म पानी से लें तो – पित्त विकार, जलन, मूत्रकच्छ, पित्ताशय का विकृत होना, पित्त जनित उदर विकार शांत होते हैं।
3-हेमन्त ऋतु में:-
छोटी हरड़ के चूर्ण में सोंठ का चूर्ण आधा भाग मिलाकर गर्म पानी से ले तो शीत व्याधि, गठिया जोड़ों का दर्द, अजीर्ण, उद्रशूल, पेचिस, पेट का अफरना, आदि समस्त उदर विकार शांत होते हैं।
4-शिशिर ऋतु में:-
हरड़ के चूर्ण में छोटी पीपल का चूर्ण 1/4 चतुर्थांश मिलाकर गर्म पानी से लें तो शीत व्याधि, शीत ज्वर, ज्वर सर्दी की खांसी, नजला, सीने का दर्द अजीर्ण मन्दाग्नि विशेष कर ठंड से चढ़ने वाला ज्वर व बलगमी खांसी में लाभदायक है।
5-वसंत ऋतु में:-
हरड़ का चूर्ण दो माशे में दुगना शहद मिलाकर चाटे तो बलगम, श्वांस खांसी बलगमी, बुखार, जुकाम, शिरदर्द को शांत करती है। एवं जुकाम में बंद नाक के बलगम को साफ करती है।
6-ग्रीष्म ऋतु में:-
हरड़ का चूर्ण कपड़छान करके, दुगना 1 साल पुराना गुड़ मिलाकर 1 माशे की गोली बना लें, प्रातः सायं और रात्रि में उबले हुये कवोष्णा पानी से 1 गोली लें, 10 दिन तक, तो समस्त वात रोग, पेट का फूलना वायु से मल का सूखकर कब्ज होना, सूखी खांसी, लू लग जाना, हैजा, मौसमी बुखार, भूख न लगना आदि समस्त विकारों को शांत करता है।
इस प्रकार छओं ऋतुओं में हरड़ सेवन करने से शरीर पूर्ण स्वस्थ रहता है। कोई रोग फटकने नहीं पाता।