आडू

सेहत के लिए आडू

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आड़ू बहुत रसीला फल है, जो गर्मीयों में पैदा होता है, सेहत के लिए आड़ू बहुत लाभदायक है, इस फल के लाभ अनेक हैं‌, दुनिया के कई देशों में उगाया जाने वाला यह फल लाल से लेकर पीले रंग में उपलब्ध होता है। आड़ू की बाहरी परत बहुत चिकनी और रसदार होती है। (juicy) और ताजे सुगंध वाला यह पीला फल बाहर से देखने में बिल्कुल सेब जैसा दिखाई देता है, लेकिन अंदर के कठोर और बड़े बीज इसे सेब से अलग पहचान देते हैं। आड़ू का उपयोग जैम और जेली बनाने में भी किया जाता है। सेहत के लिए फायदेमंद होने के कारण आड़ू का उपयोग कई रोगों के इलाज में भी किया जाता है। आड़ू में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं, आइये जानते है आड़ू के फायदे और आड़ू के नुकसान के बारें में।

आड़ू में पाए जाने वाले पोषक तत्व :-

आड़ू में बहुत ही अधिक मात्रा में पोषक तत्व पाये जाते हैं, जो सेहत के लिए आवश्यक होते हैं। आड़ू विटामिन ए और बीटा-कैरोटीन का बहुत ही बढ़िया स्रोत है। इसमें एस्कार्बिक एसिड पाया जाता है, और विटामिन ई, विटामिन के, विटामिन बी-1 बी-2, बी-3, बी-6 के अलावा यह फोलेट और पेंटोथेनिक एसिड से भरपूर होता है। इसमें कम कैलोरी होती है और कोलेस्ट्रॉल भी कम होता है। इस कारण यह सेहत के लिए अधिक फायदेमंद माना जाता है।

पाचन के लिए आड़ू के फायदे : –

️आड़ू में फाइबर और क्षार (alkeline) की मात्रा बहुत होती है, जिसके कारण यह पाचन क्रिया को बेहतर बनाए रखने में मदद करता है। आड़ू में मौजूद डाइटरी फाइबर पानी को अवशोषित करता है, और पेट की बीमारियों जैसे कब्ज, बवासीर, पेट के अल्सर और गैस की समस्या को दूर करने में मदद करता है। यह आंत से विषाक्त पदार्थों को निकालकर आंत को साफ रखता है, और पेट संबंधी बीमारियों से बचाता है।

मोटापा कम करने में :–

आड़ू में बायोएक्टिव कंपोनेंट पाया जाता है, और यह मोटापे की समस्या से लड़ने में बहुत लाभप्रद होता है। आड़ू में फिनोलिक कंपाउंड पाया जाता है जो सूजनरोधी होता है, और मोटापे की समस्या से लड़ने में मदद करता है, और मेटाबोलिक सिंड्रोम को दूर कर शरीर को गंभीर बीमारियों से बचाता है।आड़ू का उपयोग मोटापे की समस्या दूर किया जा सकता है।

इम्यूनिटी बढ़ाने में :–

आड़ू में एस्कॉर्बिक एसिड (vitamin c) और जिंक भी भरपूर मात्रा में मौजूद होता है, जो इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाता है, और शरीर की क्रिया को ठीक रखता है। जिंक और विटामिन सी घाव भरने में सहायक होता है, और संक्रमण से लड़ता है। इसके अतिरिक्त यह सर्दी, मलेरिया, निमोनिया और डायरिया जैसे रोगों को दूर करने में सहायक होता है। इन तत्वों की कमी होने पर शरीर की कई क्रियाओं में की प्रकार की गड़बड़ हो जाती हैं।

आड़ू खाने से कोलेस्ट्रॉल घटता है :–

आड़ू में मौजूद फिनोलिक कंपाउंड एलडीएल नामक खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करता है, और अच्छे कोलेस्ट्रॉल एचडीएल को बढ़ाता है। इससे हृदय संबंधी बीमारियां विकसित नहीं होती हैं, और यह कार्डियोवैस्कुलर को स्वस्थ रखने में सहायक होता है।

गर्भावस्था में आड़ू उपयोगी है :–आड़ू में अनेक आवश्यक खनिज तत्व और विटामिन होते हैं, गर्भावस्था में बहुत ही लाभदायक होते हैं। इसमें मौजूद विटामिन सी बच्चे के हड्डियों को शक्तिशाली बनाने, दांत, त्वचा, रक्त वाहिकाएं (blood vessels) और मांसपेशियों को मजबूत बनाने में मदद करता है। यह आयरन का भी अवशोषण करता है, जो गर्भावस्था के दौरान बहुत जरूरी होता है। आड़ू में पाये जाने वाला पोटैशियम आमतौर पर गर्भावस्था में होने वाली थकान से बचाता है।

आड़ू के लाभ मधुमेह में :–

आड़ू में कार्बोहाइड्रेट होता है, जिसे खाने से मधुमेह की समस्या नहीं होती है। एक मध्यम आकार के आड़ू में करीब 15 ग्राम कार्बोहाइड्रेट मिलता है, जो मधुमेह के रोगियों के लिए बहुत लाभदायक होता है। इसके अतिरिक्त आड़ू में और भी लाभदायक पोषक तत्व होते हैं, जो कि स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं।️आड़ू कैंसर से बचाता है :–

आड़ू में कैरोटीनॉयड और फिनोलिक कंपाउंड होता है, जो कैंसर रोधी (anti cancer) का काम करता है, और ब्रेस्ट कैंसर, फेफड़ों का कैंसर, कोलोन कैंसर से हमें बचाता है। इसमें क्लोरोजेनिक और नियोक्लोरोजेनिक एसिड भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो ब्रेस्ट कैंसर उत्पन्न करने वाली कोशिकाओं को सामान्य बनाता है। इसके इन्हीं गुणों के कारण कैंसर रोगियों को आड़ू का सेवन करने के लिए कहा जाता है।

आड़ू त्वचा की देखभाल के लिए :–

पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी मौजूद होने के कारण आड़ू त्वचा की देखभाल के लिए अच्छा माना जाता है। यह हानिकारक मुक्त कणों और संक्रमण से लड़ता है। यह यू वी किरणों से भी त्वचा को बचाता है। इसमें जियाजैंथीन और ल्यूटीन नामक एंटीऑक्सीडेंट मौजूद होते हैं, जो त्वचा की सूजन को दूर करने में लाभकारी होता है, आजकल आड़ू का उपयोग चेहरे की क्रीम बनाने में भी किया जाता है।

️आंखों की रोशनी के लिए आड़ू :-

आड़ू बीटा-कैरोटीन से भरपूर होता है, जो शरीर में जाकर विटामिन ए में बदल जाता है। बीटा-कैरोटीन आंखों की रोशनी (eyes sight) को बेहतर बनाने में मदद करता है, और आंखों की बीमारियों जीरोफ्थैलमिया (xerophthalmia) और अंधेपन से बचाता है। इसलिए आंखों की बेहतर रोशनी के लिए आड़ू का सेवन लाभकारी होता है।

️आड़ू बुद्धिवर्धक भी है :-

परीक्षण में पाया गया है कि आड़ू सेंट्रल कोलिनर्जिक सिस्टम को प्रभावी बनाने में लाभप्रद होता है। कोलिनर्जिक सिस्टम दिमाग का न्यूरोट्रांसमीटर सिस्टम होता है, जो की यादाश्त से जुड़ा हुआ होता है। आड़ू में पाये जाने वाले यौगिक अल्जाइमर (Alzheimer ) जैसी दिमाग की बीमारियों को दूर करते हैं, और यादाश्त को दुरूस्त बनता है।

️आड़ू के कुछ नुकसान :–

वैसे तो फलों को कैंसर का रक्षक माना जाता है, लेकिन एक अध्ययन से पता चलता है, कि नारंगी या पीले फल पुरुषों में कोलोरेक्टर कैंसर (colorectal cancer) का कारण हो सकते हैं। इसलिए आड़ू के सेवन से पहले यह ध्यान रखें।

आड़ू छोटी आंत में शर्करा का किण्वन सही तरीके से नहीं कर पाता है, अधिक सेवन की वजह से गैस की समस्या हो जाती है, और सूजन भी हो सकती है।

आड़ू के सेवन से किसी किसी को एलर्जी हो सकती है क्योकि इसमें सैलिसिलेट्स (salicylates) होता है जो एलर्जिक रिएक्शन उत्पन्न कर सकता है।

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सूर्य किरण चिकित्सा

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सूर्य की रोशनी में सात रंग की किरणें होती हैं, ज्योतिषीय मतानुसार सूर्य की किरणों से अपने सातों ग्रहों को अनुकूल कर सकते हैं :-

जातक की कुंडली के प्रतिकूल ग्रहों को सूर्य की किरणों से चिकित्सा कर भाग्य को चमकाया जा सकता है, जन्म कुंडली द्वारा जब यह निश्चित हो जाता है कि कुंडली में कौन कौन से ग्रह कमजोर हैं, जिसे आप उस ग्रह के रंग से ठीक कर सकते हैं। तब उस ग्रह के लिए सूर्य की किरणों से उपचार करना सरल हो जाता है। सूर्य की सातों किरणों का प्रभाव अलग-अलग है, अपनी प्रकृति के अनुसार ये विभिन्न रोगों और मानसिक दोषों को दूर करने में सहायक सिद्ध होती हैं। सूर्य की सातों किरणों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। शरीर में तीन प्रकार के प्रमुख दोष होते हैं:- “वात, पित और कफ” जो ग्रह कमजोर होता है, उस रंग की कमी हो जाती है। जिसे आप जातक की कुंडली से जानकर उस का उपचार कर सकते हैं। जैसे अग्नितत्व कमजोर होगा तो लाल रंग से चिकित्सा करना होगा …

१. पीला (Yellow), नारंगी (Orange), लाल (Red),

2. हरा (Green)

3. बैंगनी (Voilet), नीला (Indigo), आसमानी (Blue)

औषधिय जल निर्माण :-

1. सूर्य किरण चिकित्सा के लिए जिस किरण (Violet, Indigo, Blue, Green, Yellow, Orange या Red) का औषधिय जल बनाना हो, उसी रंग की कांच की साफ़ बोतल ले लेनी चाहिए। यदि उस रंग की बोतल न हो तो उस कलर का BOPP ले कर बोतल पर लपेट दें, बोतलों को अच्छी तरह से धोकर साफ़ कर लें। उसके बाद उसमे साफ़ पीने का पानी भर दें। बोतल को ऊपर से तीन अंगुल खाली रखें, और ढक्कन लगाकर अच्छे से बंद कर दें।

2. पानी से भरी इन बोतलों को सूर्योदय के समय से 6 से 8 घंटे तक धूप में रख दें। बोतलें रखते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी बोतल की छाया दूसरी बोतल पर न पड़े। रात्रि को बोतल को घर के अंदर रख दें। इस प्रकार सूर्य किरण औषधि तैयार हो जाती है। यह औषधिय जल को रोगी को दिन में 3-4 बार पिलायें। एक बार तैयार किये गए औषधिय जल को 4 -5 दिन तक पी सकते हैं। औषधिय जल समाप्त होने के पश्चात पुनः बना लें।

औषधि सेवन कैसे करें : –

नारंगी रंग के औषधिय जल को भोजन करने के 15 मिनट बाद और 30 मिनट के अंदर लेना चाहिए। हरे या नीले रंग के औषधिय जल को खाली पेट या भोजन करने से एक घंटा पहले सेवन करना चाहिए। हरे रंग के औषधिय जल को प्रातः काल 200 मि. ली. तक ले सकते हैं। यह औषधिय जल शरीर से Toxins को बाहर निकालता है, एवं इसका कोई विपरीत प्रभाव भी नहीं है।

मात्रा :- एक बार में एक से दो चम्मच औषधिय जल लें, दिन में तीन या चार बार ले सकते हैं।

औषधीय जल सेवन से लाभ :

1. लाल (Red) रंग :- लाल रंग की बोतल का जल अत्यंत गर्म प्रकृति का होता है। अतः जिनकी प्रकृति गर्म हो उन्हें इसे नहीं लेना चाहिए। इसको पीने से खूनी दस्त या उलटी हो सकती है। इस जल का उपयोग केवल मालिश करने के लिए करना चाहिए। यह Blood और Nerves को उत्तेजित करता है। और शरीर में गर्मी बढ़ाता है। गर्मियों में इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। यह सभी प्रकार के वात और कफ रोगों के लिए लाभ प्रदान करता है।

2. नारंगी (Orange) रंग :- नारंगी रंग की बोतल में तैयार किया गया जल Blood Circulation को बढ़ाता है, और मांसपेशियों को मजबूत करता है। यह औषधिय जल मानसिक शक्ति और इच्छाशक्ति को बढ़ाने वाला है। अतः यदि किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्रमा निर्बल है तो, उसे इस जल का उपयोग करके अत्यंत लाभ प्राप्त हो सकता है। यह औषधिय जल बुद्धि और साहस को भी बढ़ाता है। कफ सम्बंधित रोगों, खांसी, बुखार, निमोनिया, सांस से सम्बंधित रोग, Tuberculosis, पेट में गैस, हृदय रोग, गठिया, Anaemia, Paralysis आदि रोगों में लाभ देता है। यह औषधिय जल माँ के स्तनों में दूध की वृद्धि भी करता है।

3. पीला(Yellow) रंग :- शारीरिक एवं मानसिक स्वस्थता के लिए यह जल बहुत उपयोगी है परन्तु इस जल को थोड़ी मात्रा में लेना चाहिए। यह जल Digestive System को ठीक करता है अतः पेट दर्द, कब्ज आदि समस्यायों के निवारण हेतु इस जल का सेवन लाभकारी है। परन्तु पेचिश होने पर इस जल का प्रयोग वर्जित है। इसके अतिरिक्त हृदय, लीवर और Lungs के रोगों में भी इस जल को पीने से लाभ मिलता है।

4. हरा (Green) रंग :- यह औषधिय जल शारीरिक स्वस्थता और मानसिक प्रसन्नता देने वाला है। Muscles को regenerate करता है। Mind और Nervous system को स्वस्थ रखता है। इस जल को वात रोगों, Typhoid, मलेरिया आदि बुखार, Liver और Kidney में सूजन, त्वचा सम्बंधित रोगों, फोड़ा -फुन्सी, दाद, आँखों के रोग, डायबिटीज, सूखी खांसी, जुकाम, बवासीर, कैंसर, सिरदर्द, ब्लड प्रेशर, आदि में सेवन करना लाभप्रद है।

5. आसमानी (Blue) रंग: – यह जल शीतल औषधिय जल है। यह पित्त सम्बंधित रोगों में लाभप्रद है। प्यास को शांत करता है एवं बहुत अच्छा Antiseptic भी है। सभी प्रकार के बुखारों में सर्वोत्तम लाभकारी है। कफ वाले व्यक्तियों को इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। यह बुखार, खांसी, दस्त, पेचिश, दमा, सिरदर्द, Urine सम्बन्धी रोग, पथरी, त्वचा रोग, नासूर, फोड़े -फुन्सी, आदि रोगों में अत्यंत लाभ प्रदान करता है।

6. नीला (Indigo) रंग:- यह औषधिय जल भी शीतल श्रेणी में आता है। इस औषधि को लेने में थोड़ी सी कब्ज की शिकायत हो सकती है, परन्तु यह शीतलता और मानसिक शान्ति प्रदान करता है। शरीर पर इस जल का प्रभाव बहुत जल्दी होता है। यह Intestine, Leucoria, योनिरोग आदि रोगों में विशेष लाभप्रद है। तथा शरीर में गर्मी के सभी रोगों को समाप्त करता है।

7. बैंगनी (Voilet) रंग :- इस औषधिय जल के गुण बहुतायत में नीले रंग के जल से मिलते जुलते हैं। इसके सेवन से Blood में RBC Count बढ़ जाता है। यही खून की कमी को दूर कर Anaemia रोग को ठीक करता है। Tuberculosis जैसे रोग को ठीक करता है। इस जल को पीने से नींद अच्छी आती है।

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मासिक धर्म

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महिलाओं को मासिक धर्म या पीरियड्स 28 दिन में ही क्यों? :-

मासिक धर्म और चन्द्रमा दोनों के 28 दिवसीय चक्र का ज्योतिषीय सम्बन्ध है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 28 नक्षत्र (अभिजित सहित) होते हैं, जब किसी महिला के जन्म समय के नक्षत्र से वर्तमान चन्द्रमा का गोचर 28 नक्षत्रों पर पूर्ण होता है, तो नियमतः मासिक धर्म आरम्भ होता है। वस्तुत: मासिक धर्म महिलाओं के स्वास्थ्य का सूचक तंत्र है। जिसका ज्योतिषीय संबंध चंद्रमा ग्रह से होता है। इस चक्र में अनियमितता की वजह से महिलाओं को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जहां कुछ महिलाओं को पीरियड देरी से आते हैं तो, वहीं कुछ महिलाओं को मासिक चक्र पूरा होने से पहले ही पीरियड आ जाता है। समय से और नियमित माहवारी आना महिलाओं की सेहत के लिए बहुत अच्‍छा होता है। यदि कोई महिला लगातार अनियमित माहवारी का सामना कर रही है तो, उसको सावधान रहने की जरुरत है। अपने कुंडली के चंद्रमा और मंगल ग्रह पर विशेष ध्यान देना चाहिए। आइए जानते हैं आखिर क्‍यों कई बार महिलाओं को अनियमित मासिक धर्म जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

एक या दो दिन देरी से पीरियड आना या जल्‍दी आना फिर भी सामान्‍य सी बात है। मासिक धर्म का च‍क्र 28 दिनों का होता है। अगर पीरियड एक हफ्ते देरी से आते हैं या पहले ही आते हैं तो यह महिला के लिए चिंताजनक स्थिति है, और इस अवधि में महिलाओं को असहनीय दर्द भी सहना पड़ता है। यहां हम बता रहे हैं कि जल्‍दी और देरी से मासिक धर्म आने का कारण क्‍या है? क्‍या यह स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्‍याएं पैदा कर सकता है?

1. हार्मोनल असंतुलन :- यदि आपके पीरियड अनियमित हैं तो आपको जांच करने की जरुरत है कि कहीं हार्मोन में तो कुछ गड़बड़ नहीं हैं, क्‍योंकि हार्मोन अंसतुलन होने की वजह इसका असर सीधा मासिक धर्म में पड़ता है। एन्डोमीट्रीओसिस एंडोमीट्रीओसिस एक ऐसी स्थिति होती है, जहां गर्भाशय, योनि की दीवारों और फैलोपियन ट्यूबों के अस्तर में एक ऊतक का विकास होता है। जिसकी वजह से मासिक धर्म में अनियमिताएं होती हैं।

2. पोषक तत्वों की कमी :- पौषण की ओर ध्यान देना भी नि‍यमित मासिक धर्म के लिए आवश्यक है। यदि शरीर में निश्चित पोषक तत्‍वों की कमी होने लगती है तो भी इसका असर मासिक धर्म में दिखाई देता है।

3. तनाव :- कभी कभी स्‍ट्रेस का असर भी महिलाओं के मासिक धर्म पर देखने पर मिलता है। जब कोई महिला तनाव में होती है तो शरीर से कॉर्टिसॉल और एड्रेनालाईन हार्मोन शरीर से निकलते हैं, जिसके वजह से मासिक धर्म इफेक्‍ट होते हैं,
थाईराइड की समस्‍या चाहे हाइपरथायरॉडीज या हाइपोथायरायडिज्म हो, दोनों ही मामलों में मासिक धर्म के चक्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। थाइराइड का स्‍तर ज्‍यादा हो या कम लेकिन ये मासिक धर्म के लिए बिल्‍कुल भी ठीक नहीं है। हार्मोन्‍स की गड़बड़ी या असंतुलन की वजह से होता है। इस सिंड्रोम की वजह से ऑवरीज में अंडों का विकास होने में असफल हो जाता है। जिसकी वजह से मासिक धर्म में समस्‍या होती है। और संतान होने में भी समस्या आती है, जिसे आप दैनिक दिनचर्या में सुधार कर ठीक कर सकते हैं।

उपचार :-

1. कैल्शियम की मात्रा को संतुलित करें क्योंकि इसका सम्बन्ध चंद्रमा से है। माँ से संबंध मधुर रखें, पानी अपने वजन के अनुसार पियें। फ्रीज़ का सामान नहीं लें।

2. अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें। भाई से संबंध मधुर रखें, क्योंकि रक्त का संबंध मंगल से है, मासिक में रक्त डिस्चार्ज होता है।

3. लाल मिर्च व खट्टा नहीं खायें और न ही लाल वस्त्र पहनें।क्योकि इससे क्रोध बड़ेगा।

4. सोना नहीं पहने, चाँदी के आभूषणों का प्रयोग अधिक किया करें।

5. पीले वस्त्र अधिक धारण करें, हल्दी मिश्रित दूध का सेवन किया करें।

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बथुआ

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बथुआ के गुण और लाभ :-

इन दिनों दिनों बाज़ार में खूब बथुए का साग आ रहा है, बथुआ संस्कृत भाषा में वास्तुक और क्षारपत्र के नाम से जाना जाता है, बथुआ एक ऐसी सब्जी या साग है, जो गुणों की खान होने पर भी बिना किसी विशेष परिश्रम और देखभाल के खेतों में स्वत: ही उग जाता है। एक डेढ़ फुट का यह हराभरा पौधा कितने ही गुणों से भरपूर है। बथुआ के परांठे और रायता तो लोग चटकारे लगाकर खाते हैं, बथुआ का शाक पचने में हल्का, रूचि उत्पन्न करने वाला, शुक्र तथा पुरुषत्व को बढ़ने वाला है। यह तीनों दोषों को शांत करके उनसे उत्पन्न विकारों का शमन करता है। विशेषकर प्लीहा का विकार, रक्तपित, बवासीर तथा कृमियों पर अधिक प्रभावकारी है।
– इसमें क्षार होता है, इसलिए यह पथरी के रोग के लिए बहुत अच्छी औषधि है, इसके लिए इसका 10-15 ग्राम रस सवेरे शाम लिया जा सकता है।
– यह कृमिनाशक मूत्रशोधक और बुद्धिवर्धक है।
-किडनी की समस्या हो जोड़ों में दर्द या सूजन हो ; तो इसके बीजों का काढ़ा लिया जा सकता है, इसका साग भी लिया जा सकता है।
– सूजन है, तो इसके पत्तों का पुल्टिस गर्म करके बाँधा जा सकता है, यह वायुशामक होता है।
– गर्भवती महिलाओं को बथुआ नहीं खाना चाहिए।
– एनीमिया होने पर इसके पत्तों के 25 ग्राम रस में पानी मिलाकर पिलायें।
– अगर लीवर की समस्या है, या शरीर में गांठें हो गई हैं तो, पूरे पौधे को सुखाकर 10 ग्राम पंचांग का काढ़ा पिलायें।
– पेट के कीड़े नष्ट करने हों या रक्त शुद्ध करना हो तो इसके पत्तों के रस के साथ नीम के पत्तों का रस मिलाकर लें, शीतपित्त की परेशानी हो, तब भी इसका रस पीना लाभदायक रहता है।
– सामान्य दुर्बलता बुखार के बाद की अरुचि और कमजोरी में इसका साग खाना हितकारी है।
– धातु दुर्बलता में भी बथुए का साग खाना लाभकारी है।
– बथुआ को साग के तौर पर खाना पसंद न हो तो इसका रायता बनाकर खाएं।
– बथुआ लीवर के विकारों को मिटा कर पाचन शक्ति बढ़ाकर रक्त बढ़ाता है। शरीर की शिथिलता मिटाता है। लिवर के आसपास की जगह सख्त हो, उसके कारण पीलिया हो गया हो तो छह ग्राम बथुआ के बीज सवेरे शाम पानी से देने से लाभ होता है।
– सिर में अगर जुएं हों तो बथुआ को उबालकर इसके पानी से सिर धोएं। जुएं मर जाएंगे और सिर भी साफ हो जाएगा।
– बथुआ को उबाल कर इसके रस में नींबू, नमक और जीरा मिलाकर पीने से पेशाब में जलन और दर्द नहीं होता।
– यह पाचनशक्ति बढ़ाने वाला, भोजन में रुचि बढ़ाने वाला पेट की कब्ज मिटाने वाला और स्वर (गले) को मधुर बनाने वाला है।
– पत्तों के रस में मिश्री मिला कर पिलाने से पेशाब खुल कर आता है।
– इसका साग खाने से बवासीर में लाभ होता है।
– कच्चे बथुआ के एक कप रस में थोड़ा सा नमक मिलाकर प्रतिदिन लेने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

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बंग भस्म

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बंग भस्म :-

बंग भस्म धातु वृद्धि, वीर्य वर्धक, वीर्य वृद्धि की सर्वोत्तम आयुर्वेदिक औषधि है, जिसे सेवन करने से धातु क्षीणता, वीर्यस्त्राव, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन आदि रोग नष्ट होते हैं।
बंग भस्म से शुक्र संस्थान के लगभग सभी रोग नष्ट होते हैं, इस भस्म में यह गुण हैं कि यह शुक्र (वीर्य) की कमजोरी को दूर करती है, जब कोई पुरूष अधिक स्त्री सेवन अथवा अथवा अप्राकृतिक मैथुन या हस्तमैथुन करने से वातवाहिनी शिरा और मासपेशियां कमजोर होकर स्त्री प्रसंग करने में असमर्थ हो जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप मन में उत्तेजक विचार आते ही या किसी सुंदर युवती को देखने अथवा बात करने से, या अश्लील तस्वीर आदि देखने मात्र से शुक्रस्त्राव होने लगता है। एेसी दशा में बंग भस्म का सेवन करना अच्छा है। यह औषधि रोग की अवस्था के अनुसार डा. की देखरेख में लेनी चाहिए।

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बालरोग चिकित्सा

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बच्चों के रोग :-

बच्चों की चिकित्सा बड़ों की चिकित्सा से बहुत अलग होती है, क्योंकि बच्चे अपने रोग या पीड़ा को शब्दों से नहीं बता सकते, चिकित्सक को उसकी पीड़ा संकेतों से ही समझनी होती है। इसके अतिरिक्त माता-पिता को उसकी हर तकलीफ पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है। बहुत मामलों में घरेलू नुस्खों से बहुत लाभ होता है, परंतु इसके लिए हर मां पिता को बच्चे के साधारण रोगों की या तकलीफ की जानकारी हो तो चिकित्सक के पास कम से कम जाना पड़ता है।
दस्त लगने पर : – 1. जायफल या सोंठ अथवा दोनों का मिश्रण पानी में घिसकर सुबह-शाम 3 से 6 रत्ती (करीब 400 से 750 मिलीग्राम) देने से हरे दस्त ठीक हो जाते हैं।

2. दो ग्राम खसखस पीसकर 10 ग्राम दही में मिलाकर देने से बच्चों की दस्त की तकलीफ दूर होती है।

पेट की गड़बड़ी या दर्द :- 5 ग्राम सोंफ लेकर थोड़ा कूट लें। एक गिलास उबलते हुए पानी में सोंफ लेकर थोड़ा कूट लें। एक गिलास उबलते हुए पानी में डालें व उतार लें और ढँककर ठण्डा होने के लिए रख दें। ठण्डा होने पर मसलकर छान लें। यह सोंफ का 1 चम्मच पानी 1-2 चम्मच दूध में मिलाकर दिन में 3 बार शिशु को पिलाने से शिशु को पेट फूलना, दस्त, अपच, मरोड़, पेटदर्द होना आदि उदरविकार नहीं होते हैं। दाँत निकलते समय यह सोंफ का पानी शिशु को अवश्य पिलाना चाहिए जिससे शिशु स्वस्थ रहता है।

अपचः- नागरबेल के पान के रस में शहद मिलाकर चाटने से छोटे बच्चों का आफरा, अपच तुरंत ही दूर होता है।

सर्दी-खाँसी :- 1. हल्दी का नस्य देने से तथा एक ग्राम शीतोपलादि चूर्ण पिलाने से अथवा अदरक व तुलसी का 2-2 मि.ली. रस 5 ग्राम शहद के साथ देने से लाभ होता है।

2. एक ग्राम सोंठ को दूध अथवा पानी में घिसकर पिलाने से बच्चों की छाती पर जमा कफ निकल जाता है।

3. नागरबेल के पान में अरंडी का तेल लगाकर हल्का सा गर्म कर छोटे बच्चे की छाती पर रखकर गर्म कपड़े से हल्का सेंक करने से बालक की छाती में भरा कफ निकल जाता है।
वराधः (बच्चों का एक रोग हब्बा-डब्बा)- सर्दी जुखाम और छाती में कफ व खांसी अक्सर रहना।

1. इस के लिए आक के पौधे की रूई का छोटा सा गद्दा बना लिया जायेगा, उस पर बच्चे को सुलाने से यह रोग ठीक हो जाता है।

2. जन्म से 40 दिन तक कुल मिलाकर दो आने भर (1.5 – 1.5 ग्राम) सुबह-शाम शहद चटाने से बालकों को यह रोग नहीं होता।
3. मोरपंख की भस्म 1 ग्राम, काली मिर्च का चूर्ण 1 ग्राम, इनको घोंटकर छः मात्रा बनायें। जरूरत के अनुसार दिन में 1-1 मात्रा तीन-चार बार शहद से चटा दें।

4. बालरोगों में 2 ग्राम हल्दी व 1 ग्राम सेंधा नमक शहद अथवा दूध के साथ चटाने से बालक को उलटी होकर वराध में राहत मिलती है। यह प्रयोग एक वर्ष से अधिक की आयुवाले बालक पर और चिकित्सक की सलाह से ही करें।

न्यमोनिया में :- महालक्ष्मीविलासरस की आधी से एक गोली 10 से 50 मि.ली. दूध अथवा 2 से 10 ग्राम शहद अथवा अदरक के 2 से 10 मि.ली. रस के साथ देने से न्यूमोनिया में लाभ होता है।

फुन्सियाँ होने परः- 1. पीपल की छाल और ईंट पानी में एक साथ घिसकर लेप करने से फुन्सियाँ मिटती हैं।

2. हल्दी, चंदन, मुलहठी व लोध्र का पाऊडर मिलाकर या किसी एक का भी पाऊडर पानी में मिलाकर लगाने से फुन्सी मिटती हैं।

दाँत निकलने परः -1. तुलसी के पत्तों का रस शहद में मिलाकर मसूढ़े पर घिसने से बालक के दाँत बिना तकलीफ के निकल जाते हैं।

2. मुलहठी का चूर्ण मसूढ़ों पर घिसने से भी दाँत जल्दी निकलते हैं।

नेत्र रोग के लिये:- त्रिफला या मुलहठी का 5 ग्राम चूर्ण तीन घंटे से अधिक समय तक 100 मि.ली. पानी में भिगोकर फिर थोड़ा-सा उबालें व ठण्डा होने पर मोटे कपड़े से छानकर आँखों में डालें। इससे समस्त नेत्र रोगों में लाभ होता है। यह प्रतिदिन ताजा बनाकर ही प्रयोग में लें तथा सुबह का जल रात को उपयोग में न लेवें।

हिचकीः धीरे-धीरे प्याज सूँघने से लाभ होता है।

पेट के कीड़े:- 1. पेट में कृमि होने पर शिशु के गले में छिले हुए लहसुन की कलियों का अथवा तुलसी का हार बनाकर पहनाने से आँतों के कीड़ों से शिशु की रक्षा होती है।

2. सुबह खाली पेट एक ग्राम गुड़ खिलाकर उसके पाँच मिनट बाद बच्चे को दो काली मिर्च के चूर्ण में वायविडंग का दो ग्राम चूर्ण मिलाकर खिलाने से पेट के कृमि में लाभ होता है। यह प्रयोग लगातार 15 दिन तक करें तथा एक सप्ताह बंद करके आवश्यकता पड़ने पर पुनः आरंभ करें।

3. पपीते के 11 बीज सुबह खाली पेट सात दिन तक बच्चे को खिलायें। इससे पेट के कृमि मिटते हैं। यह प्रयोग वर्ष में एक ही बार करें।

4. पेट में कृमि होने पर उन्हें नियमित सुबह-शाम दो-दो चम्मच अनार का रस पिलाने से कृमि नष्ट हो जाते हैं।

5. गर्म पानी के साथ करेले के पत्तों का रस देने से कृमि का नाश होता है।

6. नीम के पत्तों का 10 ग्राम रस 10 ग्राम शहद मिलाकर पिलाने से उदरकृमि नष्ट हो जाते हैं।

7. तीन से पाँच साल के बच्चों को आधा ग्राम अजवायन के चूर्ण को समभाग गुड़ में मिलाकर गोली बनाकर दिन में तीन बार खिलाने से लाभ होता है।

8. चंदन, हल्दी, मुलहठी या दारुहल्दी का चूर्ण भुरभराएँ।

9. मुलहठी का चूर्ण या फुलाया हुआ सुहागा मुँह में भुरभुराएँ या उसके गर्म पानी से कुल्ले करवायें। साथ में 1 से 2 ग्राम त्रिफला चूर्ण देने से लाभ होता है।

मुँह से लार निकलना:- कफ की अधिकता एवं पेट में कीड़े होने की वजह से मुँह से लार निकलती है। इसलिए दूध, दही, मीठी चीजें, केले, चीकू, आइसक्रीम, चॉकलेट आदि न खिलायें। अदरक एवं तुलसी का रस पिलायें। कुबेराक्ष चूर्ण या ‘संतकृपा चूर्ण’ खिलायें।

तुतलापनः -1. सूखे आँवले के 1 से 2 ग्राम चूर्ण को गाय के घी के साथ मिलाकर चाटने से थोड़े ही दिनों में तुतलापन दूर हो जाता है।

2. दो रत्ती शंखभस्म दिन में दो बार शहद के साथ चटायें तथा छोटा शंख गले में बाँधें एवं रात्रि को एक बड़े शंख में पानी भरकर सुबह वही पानी पिलायें।

3. बारीक भुनी हुई फिटकरी मुख में रखकर सो जाया करें। एक मास के निरन्तर सेवन से तुतलापन दूर हो जायेगा।

यह प्रयोग साथ में करवायें- अन्तःकुंभक करवाकर, होंठ बंद करके, सिर हिलाते हुए ‘ॐ…’ का गुंजन कंठ में ही करवाने से तुतलेपन में लाभ होता है।

शैयापर मूत्र (Enuresis)- सोने से पूर्व ठण्डे पानी से हाथ पैर धुलायें।

औषधीय प्रयोगः- सोंठ, काली मिर्च, बड़ी पीपर, बडी इलायची, एवं सेंधा नमक प्रत्येक का 1-1 ग्राम का मिश्रण 5 से 10 ग्राम शहद के साथ देने से अथवा काले तिल एवं खसखस समान मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच चबाकर खिलाने एवं पानी पिलाने से लाभ होता है। साथ में पेट के कृमि की चिकित्सा भी करें।

दमा (श्वास फूलना):- बच्चे के पैर के तलवे के नीचे थोड़ी लहसुन की कलियों को छीलकर थोड़ी देर रखें, एवं ऊपर से ऊन के गर्म मोजे पहना दें। ऐसा करने से दमा धीरे-धीरे मिट जाता है। साथ में 10 से 20 मि.ली. अदरक एवं 5 से 10 मि.ली. तुलसी का रस दें।

सिर में दर्द:- अरनी के फूल सुँघाने से अथवा अरण्डी के तेल को थोड़ा सा गर्म करके नाक में 1-1 बूँद डालने से बच्चों के सिरदर्द में लाभ होता है।

बालकों के शरीर पुष्टि के लिए:- 1. तुलसी के पत्तों का 10 बूँद रस पानी में मिलाकर रोज पिलाने से स्नायु एवं हड्डियाँ मजबूत होती हैं।

2. शुद्ध घी में बना हुआ हलुआ खिलाने से शरीर पुष्ट होता है।

मिट्टी खाने की आदत होने परः- बालक की मिट्टी खाने की आदत को छुड़ाने के लिए पके हुए केलों को शहद के साथ खिलायें।

स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए:- 1. तुलसी के पत्तों का 5 से 20 मि.ली. रस पीने से स्मरणशक्ति बढ़ती है।

2. पढ़ने के बाद भी याद न रहता हो सुबह एवं रात्रि को दो तीन महीने तक 1 से 2 ग्राम ब्राह्मी तथा शंखपुष्पी लेने से लाभ होता है।

3. पांच‌ से 10 ग्राम शहद के साथ 1 से 2 ग्राम भांगरा चूर्ण अथवा एक से दो ग्राम शंखावली के साथ उतना ही आँवला चूर्ण खाने से स्मरणशक्ति बढ़ती है।
4. बदाम की गिरी, चारोली एवं खसखस को बारीक पीसकर, दूध में उबालकर, खीर बनाकर उसमें गाय का घी एवं मिश्री डालकर पीने से दिमाग पुष्ट होता है।
5. दस ग्राम सौंफ को अधकूटी करके 100 ग्राम पानी में खूब उबालें। 25 ग्राम पानी शेष रहने पर उसमें 100 ग्राम दूध, 1 चम्मच शक्कर एवं एक चम्मच घी मिलाकर सुबह-शाम पियें। घी न हो तो एक बादाम पीसकर डालें। इससे दिमाग की शक्ति बढ़ती है।

बच्चे को नींद न आये तब :- 1. बालक को रोना बंद न होता हो तो जायफल पानी में घिसकर उसके ललाट पर लगाने से बालक शांति से सो जायेगा।

2. प्याज के रस की 5 बूँद को शहद में मिलाकर चाटने से बालक प्रगाढ़ नींद लेता है।

स्रोत :- आरोग्य निधि पुस्तक।

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अश्वगंधा 

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अश्वगंधा प्राश (निर्माण विधि) :-


अश्वगंधा का चूर्ण 500 ग्राम, सोंठ का चूर्ण 250 ग्राम, बड़ी पीपल का चूर्ण 125 ग्राम, काली मिर्च का चूर्ण 50 ग्राम। दालचीनी, इलायची, तेजपत्र, और लौंग सभी प्रत्येक पचास-पचास ग्राम बारीक़ पीस लेवें, तदन्तर सबको 6 किलो भैंस के दूध में उबालकर उसमे 3 किलो 500 ग्राम चीनी, और 1 किलो 500 ग्राम शुद्ध घी लेकर उन्हें मिलाकर मिट्टी के बर्तन में मन्दाग्नि पर पकावें। जब उबाल आ जाये तो अश्वगंधा आदि के उपरोक्त समस्त चूर्ण को थोड़े दूध के साथ पकाकर इसमें डाल दें, और उसके बाद अग्नि पर इतना पकावें कि वह करछी से लगने लगें । तदनन्तर उसमें दालचीनी, तेजपत्र, नागकेशर, और इलायची का 20 ग्राम चूर्ण डालकर पकावें । जब उसमें चावल के समान दाने पड़ने लगें और घी अलग होने लगे तब उतारकर पिपलामूल, जीरा, गिलोय, लौंग, तगर, जायफल, खश, सुगंधवाला, सफेद चंदन, बेलगिरी, कमल, धनिया, धाय के फूल, वंशलोचन, आमला, खेर, कर्पूर, पुनर्नवा, वन तुलसी, चिता, और शतावर, प्रत्येक द्रव्य को पांच पांच ग्राम लेकर महीन चूर्ण बनाकर मिलावें और एक बर्तन में फेला देवें। शीतल होने पर प्रमाण अनुसार टुकड़े कर लें।
शास्त्रोक्त गुण धर्म :-

इसके सेवन से कफ, श्वास, अजीर्ण, वातरक्त, प्लीहा, मेदरोग, दुर्जय आमवात, शोथ, शूल, पाण्डु रोग, और अन्य वात कफ विकार नष्ट होते है। इसका एक मास तक प्रयोग करने से वृद्ध भी जवान बन सकता है। मन्दाग्नि के लिए यह बहुत ही हितकर है। यह प्राश शक्ति उत्तपन्न करने वाला तथा बालकों के शरीरों को बढ़ाने वाला है। यह सर्व व्याधि नाशक पाक है।

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टाईफाइड बुखार और आयुर्वेद

टाईफाइड अर्थात “मियादि बुखार” किसी ज़माने में टाईफाइड को मियादि बुखार इस लिये कहा जाता था क्योंकि इसकी कोई एन्टीबायोटिक नही बनी थीं। यह बुखार अपनी मियाद से ही जाता था। 7, 14, 21, 28, 35 या 42 दिन का चक्र इसके रोगाणुओं का होता है। लगभग 30 – 35 वर्ष पूर्व ही इसके लिए एंटीबाोटिक्स बनी है, ये दावा रोग के रोगाणु तो मर देती है, परन्तु फिर भी रोगाणु  दुर्बल होकर आंतों में पड़े रहते हैं। यदि आपको कभी टाइफाइड बुखार हुआ हो और आपने 7 दिन या 14 दिन एलोपैथ की गोलियां खाकर उसे ठीक कर लिया हो तो, ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसके रोगाणु दुर्बल होकर अंतड़ियों में पड़े रहते हैं। जैसे ही शरीर जरा कमजोर हुआ ये फिर हमला कर देते हैं।

क्योंकि एलोपैथ (अंग्रेजी) दवा केवल उसे दबाती है, शरीर से आँतों से निकालती नहीं। इस लिए इस रोग के लिए आयुर्वेद की शरण लेनी चाहिए। आयुर्वेदिक चिकित्सा भले ही समय अधिक लगाती है, परंतु रोग को जड़ से मिटाती है।

मियादी बुखार की आयुर्वेदिक चिकित्सा:-  किसी भी मेडिकल स्टोर से ‘महासुदर्शन घनवटी’ का 30 गोलियों वाला पत्ता ल लीजिए, और साथ में गिलोय सत्व ले लीजिए। महासुदर्शन घन वटी की एक गोली प्रात और एक शाम को 40 दिन खाइये, और फिर निश्चित हो जाइए आपको जीवन में कभी भी टाइफाइड तो क्या सामान्य बुखार भी नहीं होगा ।

जबर्दस्त कड़वी यह गोली टाइफाइड को तो डंडे मार मारकर खदेड़ ही देगी, और जब तक आप जियेंगे आपको टाइफाइड नहीं हो सकता।

जो भी इस गोली को लेता है, वह इसका गुणगान जीवन भर करता है । यह गोली इतनी कड़वी है कि मुँह में लेते ही तुरंत गुनगुने पानी से निगल जाइये तब भी हल्का सा कड़वा तो कर ही देती है मुंह को। यह गोली आयुर्वेद के ‘महासुदर्शन चूर्ण’ का ही घनसत्व गोली रूप में है, ताकि कड़वापन न झेलना पड़े ।

यह गोली थोड़ी सी गर्म होती है, इसलिए रात को हल्की सी बेचैनी भी कर सकती है, और हो सकता है आपको नींद थोड़ा विलंब से आए । सर्दियों में रात को कोई दिक्कत नहीं । गर्मियों में एक दो गोली खाली पेट केवल सुबह लें गुनगुने पानी से । पाँच साल से ऊपर के बच्चों को एक गोली दे सकते हैं ।

यह गोली घर रखिये और जैसे ही किसी को कोई भी बुखार चाहे वाइरल फीवर लगे हल्का सा भी शक लगे तो रात को दो गोली लेकर सो जाएं । सुबह आप ऐसे उठएंगे जैसे किसी अच्छे मिस्त्री खराब मोटरसाइकिल की बहुत अच्छे से सर्विस कर दी हो । यह गोली पेट की सफाई भी करती है । इस गोली को किसी भी मेडिकल स्टोर से या आयुर्वेदिक स्टोर से खरीद सकते है, जिसमें 30 गोलियां होती हैं ।

यह गोली खून भी साफ़ करती है । तभी तो यह जीवन भर बुखार होने की गारंटी है । टाइफाइड की तो यह दुश्मन है । जिसने इसे प्रयोग कर लिया वो जीवन भर केवल केवल इसी का गुणगान करेगा ।

Dr. R.B.Dhawan (आयुर्वेदिक चिकित्सक)

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रोगी

by:-  dr. r.b.dhawan

किस-किस श्रेणी के रोगी होते हैं? : –

१. बुद्धिमान ?

२. अबुध? 

३. दुर्मति ?

४. मुर्ख ?

प्राज्ञो रोगे समुत्पन्ने बाह्येनाभ्यन्तरेण वा। 

कर्मणा लभते शर्म शस्त्रोपक्रमणेन वा।।

च. सू . ११/५६ 

बालस्तु खलु मोहाद्वा प्रमादाद्वा न बुध्यते। 

उत्पद्यमानं प्रथमं रोगं शत्रुमिवाबुधः।।

च. सू . ११/५७ 

अणुर्हि प्रथमं भूत्वा रोगः पश्चाद्विवर्धते। 

स जातमूलो मुष्णाति बलमायुश्च दुर्मतेः।।

च. सू . ११/५८ 

न मूढो लभते सञ्ज्ञां तावद्यावन्न पीड्यते। 

पीडितस्तु मतिं पश्चात् कुरुते व्याधिनिग्रहे।।

च. सू . ११/५९ 
बुद्धिमान मनुष्य रोग के उत्पन्न होते ही बाह्य वा अभ्यन्तर वा शस्त्र कर्म रूप चिकित्सा ले कर कल्याण को प्राप्त होता है। 

अबुध ( बालक बुद्धि ) ही है वो वास्तव में जो अज्ञान वा प्रमाद वस् अपने शत्रु रूप उत्पन्न हुए रोग को प्रारम्भ में ही नहीं समझता। 

कुबुद्धि वाला – दुर्मति द्वारा नहीं समजा गया वो रोग प्रारम्भ में अणु रूप – अल्प ही होता है जो पीछे से बढ़ जाता है और बढने से बलवान हुआ रोग दुर्मति मनुष्य के बल एवं आयुष्य को नष्ट करता है। 

मूढ़ – मुर्ख व्यक्ति जब तक बलवान रोग से अधिक पीड़ित नहीं होता तब तक उसे दूर करने के लिए संज्ञान नहीं लेता। जब रोग बढ़ जाता है तब अधिक दुखी होता है तत पश्चात  व्याधि को दूर करने में अपनी बुद्धि लगाता है। 

प्रायः रोगी जो हमारे पास आते है वह अंतिम श्रेणी के होते है, कोई कोई द्वितीय या तृतीय श्रेणी के होते है, परन्तु प्रथम श्रेणी में आने वाले तो विरले ही होते है।

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गिलोय (अमृता)

गिलोय का महत्व :-

गिलोय परिचय – यह एक बहु वर्षीय लता है । इसके पत्तों का आकार पान के पत्तो जैसा होता है, आयुर्वेद में इसे गुडूची, और अमृता के नाम से जाना जाता है ।

उपयोग :- आप ने देखा होगा, हमारे देश में निरंतर पिछले कुछ वर्षों से वर्षा के बाद डेंगू , और स्वाइन फ्लू का प्रकोप हो रहा है, हस्पताल डेंगू के रोगियों से भर जाते हैं, और एलोपेथी दवा इतनी कारगर साबित नही हो रही, तब लोग आयुर्वेद की शरण मे आ रहे हैं ।

संकट के ऐसे समय में आयुर्वेद के चिकित्सकों ने इसी गिलोय से लोगो को राहत दिलाई है, इसी लिए पिछले कुछ वर्षों से लोग गिलोय के गुणों से परिचित होकर गिलोय की ओर आकर्षित हुए हैं।

गिलोय के पत्तो एवं तनों से सत्व निकाल कर इस्तेमाल किया जाता है ।

यह स्वाद में कड़वा होता है ।

गिलोय के गुण इतने हैं कि गिनाए नही जा सकते ।

इसमें सबसे बड़ा गुण यह है कि यह शरीर की रोग-प्रतिरोधक सिस्टम को बढ़ाता है । शोथ (सूजन) को  ठीक कर देता है।

मधुमेह को नियंत्रण में रखता है ।

शरीर का शोधन ( सफाई करना शोधन कहलाता है ) करता है ।

दमा एवं खांसी जैसे रोगों  में भी अच्छा लाभदायक है ।

इसे नीम एवं आंवला के रस के साथ इस्तेमाल करने पर त्वचा गत रोगों को ठीक करता है ।

नीम एवं आंवला के साथ सेवन करने पर एक्जिमा और सोरायसिस जैसे रोगों से मुक्ति मिल सकती है ।

यह एनीमिया की स्थिति में बहुत लाभदायक है । पाण्डु रोग (पीलिया ) में बहुत कारगर साबित होता है ।

 Dr.R.R.Dhawan