एनीमिया कारण और निवारण शरीर में खून का नहीं होना या कम मात्रा में होनाएनीमिया कहलाता है। वास्तव में यह खून की कमी न हो कर लाल रक्त कणों ; भ्ंमउवहसवइपदद्ध की कमी होती है। लाल रक्त कणों का मुख्य कार्य ऑक्सीजन को शरीर में स्थित विभिन्न कोशिकाओं तक पहुँचाना है, जिससे प्रत्येक कोशिका को आक्सीजन मिल सके। इसकी कमी से शरीर की कोशिकाओं को ऑक्सीजन कम मिल पाती है, जिससे वे कोशिकाएं ठीक ढ़ंग से काम नहीं कर पातीं।
एनीमिया होने के मुख्यतरू दो कारण है-
1. रक्त स्त्राव- अधिक रक्त का बहना।
2. लाल रक्त कणों का नष्ट होना।
एनीमिया के लक्षण;
- निर्बलता
2. बैठे-बैठे ही साँस फूलना।
3. चक्कर आना, आंखों के आगे अंधेरा होना।
4. सुनाई कम पड़ना, कानों में सीटी बजना।
5. सिर दर्द।
6. नजर का कम होना।
7. नींद का कम होना।
8. पैरों में सूजन होना।
9. हाथ और पैर की उंगलियों में चींटी सी चलना या झनझनाहट होना।
10. बच्चों की शारीरिक वृद्धि या वजन बढ़ना रूक जाना।
एनीमिया के इन लक्षणों में से कोई एक या सारे लक्षण भी प्रकट हो सकते हैं। लक्षणों का प्रकट होना इस बात पर निर्भर करते हैं, कि कितने समय में हीमोग्लोबिन कम हुआ। जैसे किसी के रक्त में लाल रक्त कणों की मात्रा एक सप्ताह में 12 ग्राम से 8 ग्राम हुई, तो लक्षण अधिक होंगें। यदि किसी व्यक्ति में लाल रक्त कणों की संख्या एक वर्ष में कम हुई, तो ऐसे व्यक्ति में लक्षण कम होंगे, क्योकि लाल रक्त कणों की संख्या एक साल में 12 ग्राम से 8 ग्राम हुई। एनीमिया किन कारणों से होता हैं? एनीमिया होने के विभिन्न कारणं हो सकते है, परन्तु प्रायरू लौह तत्व की कमी से होने वाला एनीमिया प्रमुख है, दूसरे प्रकार के एनीमिया दुर्लभ होते हैं। यहाँ लौह तत्व की कमी से उत्पन्न होने वाले एनीमिया के विषय में ही बताया जा रहा है। दिन भर के भोजन में लौह तत्व की केवल 1 मिलीग्राम की मात्रा आवश्यक होती है। गर्भावस्था में व स्तनपान कराने वाली महिलाओं में इसकी आवश्यकता अधिक होती है।
लौह तत्व की कमी से उत्पन्न एनीमिया के तीन मुख्य कारण हैं –
1. रक्त स्त्राव
2. भोजन में लौह तत्व की कमी
3. भोजन से प्राप्त लौह तत्व का पाचन न होना।
इनमें भी पहला कारण ही मुख्य है। जब भी रक्त स्त्राव से उत्पन्न लौह तत्व की कमी भोजन में उपलब्ध लौह तत्व की मात्रा से ज्यादा होती है, तो एनीमिया हो जाता है। यदि आयु बढ़ने पर बच्चे को दूसरा आहार देने में देरी हो जाती है और वह लम्बे समय तक केवल दूध पर ही निर्भर रहता है, तो बालक को लौह तत्व की कमी अवश्य हो जायेगी। ऐसा आहार, जिसमें लौह तत्व की मात्रा अधिक हो, बच्चे को देते ही यह कमी तुरन्त दूर हो जाती है। जब शरीर में तेजी से विकास होता है और लौह की आवश्यकता बढ़ जाती है, जो भोजन से उपलब्ध नहीं हो पाती, क्योंकि इस उम्र में युवाओं का रूझान संतुलित आहार की अपेक्षा ‘फास्ट फूड’ पर ज्यादा होता है।
रजस्वला स्त्री के शरीर को भी लौह तत्व की अधिक आवश्यकता होती है, उसे 2 मिलीग्राम लौह प्रतिदिन के भोजन के द्वारा प्राप्त होना चाहिए। यद्यपि गर्भावस्था में रजस्त्राव से होने वाली लौह तत्व की कमी तो रूक जाती है, परन्तु शिशु और माँ के शरीर की आवश्यकता बढ़ जाती है। गर्भावस्था के समय के साथ ही साथ लौह तत्व की आवश्यकता में भी वृद्धि होती जाती है। गर्भावस्था के दूसरे तीसरे माह के पश्चात् माँ के शरीर को लौह तत्व की आवश्यकता अधिक होती है और यह आवश्यकता इतनी अधिक बढ़ जाती है, कि दैनिक भोजन में भी उसकी पूर्ति नहीं हो पाती। इसीलिए चिकित्सक गर्भावस्था में लौह व कैल्शियम लेने की सलाह देते हैं। ज्यादातर यह पाया गया है, कि महिलायें इस विषय की गम्भीरता पर ध्यान न दे कर दवायें नियमित रूप से नहीं लेतीं, जिसका दुष्प्रभाव बच्चे व मां दोनों पर पड़ता है। बवासीर, पेट का अल्सर, आदि से भी जो रक्त स्त्राव होता है, उससे भी एनीमिया हो जाता है।
उपचार-
लौह तत्व की कमी को दूर करने के लिए भोजन में पाये जाने वाले लौह तत्व की मात्रा पर्याप्त होनी चाहिये, इसी लिए लौह तत्व वाला भोजन निरन्तर लेने की सलाह दी जाती है। जब शरीर में लाल रक्त कणों की संख्या बहुत कम होती है, तब इस कमी को पूरा करने के लिए आयरन टेबलेट या कैपसूल के द्वारा शरीर को लौह तत्व की आपूर्ति की जाती है। लौह तत्व की पर्याप्त मात्रा लेने से से लाल रक्त कणों की संख्या बढ़ने लगती है।
नोट- कब, क्या और कितनी अधिक मात्रा माँ लौह तत्व लेना है, यह हमेशा अपने अनुभवी चिकित्सक से परामर्श करने के उपरान्त ही लें।
लौह तत्व से युक्त भोजन लेते रहना चाहिए, जिससे कि शरीर के लौह भण्डार फिर से भर जायें। लौह तत्व की अधिक मात्रा वाले आहार शाकाहारी भोजन में अनाज, हरी पत्तियों की सब्जियां जैसे पालक आदि, तेल बाले बीज जैसे तिल, सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूखे मेवे व गुड़ आदि में लौह तत्व की मात्रा पर्याप्त होती है। यदि सामान्य भोजन को भी लोहे के बर्तन में पकाया जाय, तो उसमें लौह तत्व की मात्रा बढ़ जाती है। कुछ आहार शरीर द्वारा लौह तत्व की पाचन क्षमता को भी प्रभावित करते हैं। नीबू लौह तत्व की पाचन क्षमता में वृद्धि करता है, जबकि चाय में पाया जाने वाला टैनिन, सब्जियों में पाया जाने वाला ऑक्सालेट आदि तत्व इस पाचन क्षमता में बाधा डालते हैं। एनीमिया होने पर चिकित्सकीय दृष्टि से शरीर को लौह तत्व की अधिक मात्रा या कवेम की आवश्यकता होती है। चिकित्सक ऊपर बताये गए लक्षणों को देख कर तथा जिह्ना, हथेली, नाखून, अन्दर से पलकों में पीलापन देख कर एनीमिया को पहचानते हैं तथा लैबोरेटरी जांच की सहायता से एनीमिया की मात्रा तथा इसके प्रकार की जांच करते हैं। हृदय के कुछ रोगों का कारण एनीमिया ही होता है।
आयुर्वेदिक उपचार-
अदरक जहाँ एक खांसी या कफ में लाभदायक औशधि है, वहीं अयुवेदीय ग्रर्थो मे इसे रक्त की कमी को समाप्त करने के लिए एक श्रेष्ठ औशधि कहा गया हैं। इस औशधि का प्रयोग धैर्यपूर्वक करने पर ही सफलता प्राप्त होती है। चार-पाँच ग्राम अदरक तथा शहद मिलाकर रोज प्रातरू पीयें। महीने भर तक नियमित प्रयोग से खून बनने की प्रक्रिया में तेजी आयेगी तथा चेहरे का सौन्दर्य भी निखर उठेगा। एक तथ्य यह भी ध्यान रखने योग्य है, कि रक्तदान करने वाले व्यक्ति का पहले ‘हीमाग्लोबिन टेस्ट’ किया जाता है और हीमाग्लोबिन के कम होने पर रक्त लिया ही नहीं जाता। रक्तदान के समय एक व्यक्ति से करीब 300 मिलीलिटर रक्त ही लिया जाता है। लौह तत्व युक्त संतुलित भोजन करने पर कुछ ही दिनों में इसकी पूर्ति हो जाती है। एक स्वथ्य व्यक्ति को भी समय-समय पर अपने शरीर में हीमोग्लोबिन की जांच कराते रहना चाहिए। वर्ष में एक बार या कभी भी संदेहात्मक स्थिति आने पर अपने चिकित्सक से तत्काल सलाह ले